27 सितम्बर 2013 को
6 सदस्यीय स्वतंत्र जांच दल द्वारा मध्य प्रदेश के हरदा जिले के खिरकिया
में हुई साम्प्रदायिक घटना की जांच हेतु वहां का दौरा किया गया था । यहाँ प्रस्तुत है फैक्ट
फाइंडिंग टीम के रिपोर्ट का प्रमुख निष्कर्ष ! पूरी रिपोर्ट यहाँ पढ़ी जा सकती है.
मध्यप्रदेश में पिछले लगभग दस वर्षों से शासन कर रही भाजपा
सरकार लगातार ऐसे कदम उठा रही है
जिनसे अल्पसंख्यकों में भय व्याप्त हो रहा है। इस दौर में भाजपा के सहयोगी संगठन
भी अत्यंत मुखर व आक्रामक हो गए हैं। राज्य में संघ परिवार को अपनी मनमानी करने की
एक तरह से छूट मिली दिख रही है।
कुछ सालों पहले मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री ने सरकारी
कर्मचारियों से आव्हान कर दिया है कि वे आर.एस.एस. की सदस्यता लें। मध्यप्रदेश में
हिन्दू संस्कृति को पिछले दरवाजे से जनता पर लादने का तरीका अपनाया जा रहा है। हर
मौके का इस्तेमाल हिन्दू धार्मिक शब्दावली को शासकीय शब्दावली का भाग बनाने के लिए
किया जा रहा है। जैसे स्कूल शिक्षकों के लिए ऋषि संबोधन चुना गया,राज्य की
बालिका कल्याण योजना का नाम है लाडली लक्ष्मी, बाल पोषण योजना को
अन्नप्राशन, जल संरक्षण कार्यक्रम का
जलाभिषेक कहा जाता है । स्कूलों में “सूर्य नमस्कार“ करवाया जाता है।राज्य के स्कूलों में योग
अनिवार्य भी कर दिया गया था। बाद में उसे ऐच्छिक विषय बना दिया गया। परंतु चूंकि
अधिकांश हिन्दू विद्यार्थी योग सीखते हैं अतः अल्पसंख्यक छात्र-छात्राओं का स्वयं
को अलग-थलग महसूस करना स्वभाविक है।
दूसरी तरफ मध्यप्रदेश ,संघी आतंकवादियों की शरणस्थली व गढ़ के रूप में
भी उभरा है। सुनील जोशी, प्रज्ञा सिंह ठाकुर, कालसांगरा, देवेन्द्र शर्मा, संदीप डांगे व अन्य
हिंदुत्ववादी आतंकी, मध्यप्रदेश में बेखौफ अपना
काम करते रहे।
मध्यप्रदेश में बिना साम्प्रदायिक
घटना घटे कोई भी महीना नही गुजरता है। खास तौर पर इदौर, रतलाम, देवास, बुरहानपुर, खंडवा, हरदा, बैतूल, सागर, नीमच आदि जिले उन्मादी
धार्मिक हिंसा का लगातार शिकार हुऐ है।हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा लोक सभा में
दी गयी जानकारी के अनुसार मध्यप्रदेश में पिछले 2009 से 2013 के बीच
कुल 432 साम्प्रदायिक
घटनायें हुई है, इस दौरान मध्यप्रदेश, देश में तीसरे
स्थान पर रहा है। 19 सितम्बर 2013 को हरदा
जिले के खिरकिया नगर पंचायत में हुई साम्प्रदायिक हिंसा प्रदेश भी इसी सिलसिले की
एक कड़ी जान पड़ती है।
जांच दल:-
दिनांक 27 सितम्बर 2013 को भोपाल से एक 6 सदस्यीय
स्वतंत्र जांच दल ने दिनांक 19 सितम्बर 2013 खिरकिया
में हुई साम्प्रदायिक घटना की जांच हेतु खिरकिया का दौरा किया। यह छः सदस्यीय टीम
खिरकिया में हुए साम्प्रदायिक दंगें के पीडि़तों के अतिरिक्त वहां के पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं व पुलिस
अधीक्षक आदि से मुलाकात की। जांच दल में शामिल लोग इस प्रकार थे:- लज्जाशंकर
हरदेनिया (वरिष्ठ पत्रकार व राष्ट्रीय सेकूलर मंच), योगेश दीवान (पिपुल्स रिसर्च सोसायटी), सुन्दर खड़से (महाड़), विजय कुमार भा.क.पा.(मा-ले), दीपक विद्रोही (क्रांतिकारी
नौजवान भारत सभा), उपासना बेहार
(एन.एस.आई.भोपाल), आजम खान (ऐडवोकेट)।
साम्प्रदायिक घटनाक्रम:-
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से लगभग 200 किलोमीटर
खिरकिया मध्यप्रदेश के छोटे जिलों में से एक हरदा जिले के भीतर एक नगर पंचायत है
जिसकी आबादी लगभग 25,000 है। आबादी का एक तिहाई हिस्सा मुस्लिम
सम्प्रदाय से आता है। छीपाबड़ हरदा जिला मुख्यालय से लगभग 30 किमी. और
खिरकिया ब्लाक से 5 किमी. दूर स्थित है। छीपाबड़ के वार्ड क्र.-14 में लगभग 90 प्रतिशत
से अधिक मुस्लिम आबादी है। जबकि अन्य वार्डों में मिली-जुली आबादी है। वार्ड क्र.-12,13,14 के सभी
परिवार नर्मदा नदी पर इंदिरा सागर बांध बनने के कारण हरसूद से विस्थापित होकर यहाँ
आ के बसे है इन परिवारों को अभी तक पट्टे प्रदान नही किये गए है। यहाँ
परिवार खेती व मजदूरी करके अपना गुजर-बसर कर रहे थे।
घटना दिनांक 19 सितम्बर 2013 दिन
गुरूवार सुबह 9 बजे की
है जिसमें एक मुस्लिम खेतीहर परिवार ताज खान, नियाज खान के यहां काम करने वालें कालू कोरकू
आदिवासी ने एक बछड़े को बार-बार खेत चरने के कारण डंडों से पीटकर भगा दिया बाद में
कथित तौर पर उस मवेशी की मौत हो गई। देखते ही देखते छीपाबड़, खिरकिया इलाके में
मुस्लिम व्यक्तियों द्वारा गाय को मारकर फेंकने की खबर फैला दी गई। कुछ समय बाद
हिन्दुवादी संगठन बजरंग दल, विश्व हिन्दु परिषद, गौ-रक्षा कमांडों फोर्स के
सदस्यों ने एक कटी हुई गाय को टैªक्टर पर रखकर होशंगाबाद-खंडवा राजमार्ग पर स्थित छीपाबड़ के
महाराणा प्रताप चैराहे पर चक्का जाम कर दिया । देखते ही देखते 4-5 हजार
लोगों की भीड़ चैराहे के इर्द-गिर्द इकठ्ठा हो गई और जोर-जोर से मुस्लिम समुदाय के
विरोध में भड़काऊ नारे लगाने लगी। उन्मादी भीड़ 1 बजे के
आसपास दो हिस्सों में बंट गई। जिसमें कुछ लोगों ने मस्जिद के इमाम हाफिज शौकत से
मारपीट कर मस्जिद में तोड-फोड़ की तो वहीं दूसरी ओर वार्ड क्र.-14 छीपाबड़
में जाकर 20 से 25 घरों को
आग के हवाले कर दिया। दंगाइयों ने लगभग 30 दुपहिया
वाहन, एक जीप और एक मेटाडोर को
जलाकर खाक कर दिया।
इस दौरान कुछ प्रत्यक्षदर्शियों द्वारा बताया गया कि भीड़ के साथ पुलिस की
एक गाड़ी थी पर पुलिस वाले लगभग मूक दर्शक की भूमिका में थे। इस सिलसिले में
जांच दल द्वारा हरदा जिले के पुलिस अधिक्षक दीपक वर्मा से बात की गई तो
उन्होनें बताया कि हरदा जिले में अन्य जिलों की अपेक्षा पुलिस बहुत कम है इसके
अलावा उस दिन हरदा पुलिस का एक हिस्सा बैतुल गया था जहाँ मुख्यमंत्री षिवराज
सिंह आये हुए थे। इस बीच हरदा कलेक्टर रजनीश श्रीवास्तव व एस.पी. दीपक वर्मा घटना
स्थल पर पहुंचे तो उनको भी दंगाईयों ने खदेड़ दिया व उन पर पत्थरों से हमला किया।
पुलिस अधीक्षक व कलेक्टर के घटना स्थल पर पहुंचने के बाद
लगभग शाम 4 बजे
कफ्र्यू लगा दिया गया। इस बीच हालात को नियंत्रण में करने के लिए पुलिस को हवाई
फायरिंग भी करनी पड़ी जिससे 3 लोग छर्रे लगने से लहुलूहान
हो गये थे। लगभग 30-35 लोगों की गिरफ्तारी भी की गई। अंततः
स्थिति काबू में आने के बाद 23 सितम्बर को कफ्र्यू हटा
लिया गया था।
फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट का प्रमुख निष्कर्ष
छीपाबड़ दंगें में योजनाबध तरीके से निशाना बना कर गरीब और
बेकसूर मुसलमानों के घर, झोपड़ों को जला कर ध्वंस्त
किया गया है बाहर से आयी ये भीड़ पेट्रोल से भरी बोतलों और कुप्पियों से लैस थी।
घरों के ऊपर पेट्रोल का छिड़काव करने पहले भीड़ द्वारा इन गरीब मुसलमानों के घरों
में घुस कर लूटपाट की गई और फिर पेट्रोल छिड़क कर वहां आग लगा दिया गया। यह भीड़
स्थानिय नही थी, बल्कि इसमें आसपास के जिलों
से आये लोग शामिल थे। हाँ कुछ स्थानीय लोगों ने जरुर इस भीड़ को मुसलमान घरों की
पहचान करने में मदद कर रहे थे।
जो घर जले हैं वहां कुछ नही बचा। अनाज, कपड़े, फर्नीचर इल्यादि सब कुछ जल
गया। कई महिलाऐ तो ऐसी हैं जिनके पास वही कपड़े बचे हैं जो वे पहने हुए हैं।
घटना क्रम के समय अनेक बच्चे स्कूल जा चूके थे, भीड़ का एक हिस्सा इन स्कूलों
में भी गया और षिक्षकों से कहा कि मुसलमान बच्चों को हमें सौप दिया जाये। स्कूल के
शिक्षकों ने उनसे कहा
की वे सब बच्चे तो अपने घर जा चूकें है इन स्कूल शिक्षकों की सूझबूझ
की तारीफ की जानी चाहिए कि उन्होनें घटना की भनक लगते ही सभी मुस्लिम बच्चों को एक
कमरे में छुपा कर ताला लगा दिया था।
घटना का दिन भी बहुत सोच समझ कर चुना हुआ जान पड़ता है।
घटना के दिन ही पास के जिले बैतूल में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का कोई कार्यक्रम
था इसलिए हरदा पुलिस का एक बड़ा जिला अपनी डयूटी बजाने बैतूल गया हुआ था। बची खुची
पुलिस फोर्स इतनी कम संख्या में थी कि वो दंगाईयों का सामना करना तो दूर उन्हें
चेतावनी देने की स्थिति में भी नही थी। उनकी भूमिका तो मूक दर्शक की ही बनी रही।
इस पूरी घटना क्रम के सूत्रधार के रुप में जिन दो पात्रों का नाम प्रमुख रुप से
सामने आ रहा है उसमें से एक स्थानीय विधायक कमल पटेल का बेटा सुदीप पटेल है तथा
दूसरा सुरेन्द्र पुरोहित (टाइगर) नाम का एक व्यक्ति है जो कि पिछले दो माह से रह
कर “चारुआ” नाम के गौशाला का संचालन करता है और खुद को “गौ-सेवा कमांड़ो” का चेयरमेन कहता है। घटना के दिन
से वह गायब है। सुरेन्द्र पुरोहित ने ही भीड़ के सामने बहुत ही भड़काऊ भाषण दिया
था।
दंगें के बाद की स्थिति भी चिंताजनक है। इस दंगें में जो परिवार आगजनी और हिंसा का शिकार हुए है वो पहले से ही हरसूद के विस्थापित हैं। प्रशासन द्वारा पीडि़तों को क्षतिपूर्ती के नाम पर 5 से 20 हजार का चेक दिया गया है जो कि क्षति के हिसाब से बहुत कम है। इतने कम पैसों में घर बनवाना, घर के सारे सामान, कपड़े खरीदना,बच्चों की किताब कापियां, खाने के लिए अनाज किसी भी तरह से संभव नही है।
दंगें
का बच्चों के मनोदशा पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा है। वे अभी भी डरे सहमें हैं।
अनेक बच्चे रातों में जाग कर अचानक चिल्लाने लगते हैं। बाहरी व्यक्ति देख कर डर से
सवाल पूछते हैं कि कही ये फिर से हमारा घर तो नही जलायेगें।
फैक्ट फाईडिंग टीम द्वारा निम्नलिखित अनुशंसाएं की गयी
हैं:-
जिनके मकान जलाए गए हैं उन्हें
स्थानीय प्रशासन की तरफ से सहायता दी गई है। सहायता में किसी को 5 हजार और
किसी को 10 हजार
रूपये के चैक दिए गए हैं। परन्तु नुकसान के मद्देनजर, दी गई सहायता, ऊँट के मुंह में जीरे
के समान है। अतः हमारी मांग है कि जिनके मकान जले हैं उन्हें किसी सरकारी एजेंसी
से मकान बनवाकर दिए जाएं।
गांव के समस्त पीडि़त दूसरी बार
विस्थापित हुए हैं। वे पहले नर्मदा में बनने वाले बांध के कारण विस्थापित हो चुके
हैं और उन्हें यहां बसाया गया था। परन्तु अभी तक उन्हें उन जमीनों का पट्टा नहीं
मिला है जिन पर उनके मकान बने हैं। इन लोगों को तत्काल पट्टा दिया जाये
जिन्होंने आग में अपना सब कुछ खो दिया है उन्हें कम से कम
अगले चार महीनों के लिए अनाज, खाने का तेल, शक्कर, केरोसीन, ईंधन, बर्तन, कपड़े आदि दिए जाएं।
हादसे के बाद गांव में रहने वाले
बच्चे डरे और सहमे हुए हैं। उन्हें मनोचिकित्सक की
आवष्यकता है। उनमें से जो बच्चे स्कूल जाते थे, वे अब स्कूल नहीं जा रहे हैं।
अतः सुझाव है कि गांव में ही फिलहाल अस्थायी रूप से एक स्कूल खोला जाए। बाद में
उसे स्थायी रूप दिया जाए।
पीडि़तों द्वारा बताया गया है कि
भीड़ में शामिल असामाजिक तत्व बोतलों और कुप्पियों में पेट्रोल लिए हुए थे और
मकानों पर पेट्रोल फेंककर आग लगा रहे थे। बताया गया कि भीड़ के लोग पेट्रोल पंप से
बार-बार पेट्रोल लेकर आ रहे थे। यह कैसे संभव हुआ, इसकी जांच की जाए। इस बारे में पेट्रोल पंप के
मालिकों एवं कर्मचारियों से जानकारी ली जाए।
पीडि़तों ने यह भी बताया कि वहां के
स्थानीय विधायक श्री कमल पटेल का एक पुत्र सुदीप पटेल हिंसक भीड़ का नेतृत्व कर
रहा था। इस बात की जांच की जाए और यदि इसके पुख्ता सबूत मिलते हैं तो विधायक के
पुत्र के विरूद्ध आवष्यक कार्यवाही की जाए।
पीडि़तों द्वारा बताया गया है कि
भीड़ के समक्ष सुरेन्द्र राज पुरोहित उर्फ टायगर नाम के एक व्यक्ति ने अत्यधिक
भड़काऊ भाषण दिया था। इस व्यक्ति का नाम सुरेन्द्र टायगर बताया गया है जो स्वयं को
एक गौ-सेवा कमांडो फोर्स का चेयरमेन बताता है। वह उस दिन की घटना के बाद से गायब
है। उसे शीघ्र गिरफ्तार किया जाए।
घटनास्थल पर फायर बिग्रेड पहुंचने में बहुत देर हुई और जो
एक फायर बिग्रेड वहां पहुंची, उसे नाकाम कर दिया गया। उसके पहियों को पंचर कर
दिया गया। यह आपराधिक कृत्य किसने किया, उसका पता लगाया जाए और उन्हें दंडित किया जाए।
कुछ लोगों ने बताया कि भीड़ में 3-4 हजार लोग
शामिल थे, कुछ ने बताया कि 6-7 हजार लोग
थे। इतनी बड़ी भीड़ इतने कम समय में कैसे इकट्ठा हो गई, यह अपने आप में जांच का विषय
है। ऐसा लगता है यह हादसा योजनाबद्ध था। मरी गाय के पाये जाने के थोड़े समय बाद ही
इतनी बड़ी भीड़ का इकट्ठा हो जाना इस संदेह की गुंजाइश देता है कि पूरा
घटनाक्रम योजनाबद्ध था। हमें यह भी बताया गया कि भीड़ के साथ एक ट्रेक्टर चल रहा
था, जिसकी ट्राली में पत्थर भरे
हुए थे। स्थानीय शासन की भूमिका भी जांच का विषय है।
कुछ पीडि़तों ने हमें बताया कि
हमलावरों में बजरंग दल के लोग बड़ी संख्या में शामिल थे। इस आरोप की जांच की जाए।
और यदि किसी संगठन के लोग शामिल थे तो उस संगठन के पदाधिकारियों से न सिर्फ पूछताछ
की जाए बल्कि उनके विरूद्ध आवष्यकतानुसार कार्यवाही की जाए।
स्थानीय प्रशासन की तरफ से दंगा
पीडि़तों को मुआवजे के रुप में चैक दिये गये है लेकिन
कई परिवार ऐसे हैं जिनके बैक में खाते नही है और दंगाईयों द्वारा पूरा घर जला दिये
जाने के कारण उनके पास कोई दस्तावेज नही है जिसको दिखा क रवह अपना बैक खाता खुलवा
सके। अतः प्रशासन द्वारा इन लोगों का शपथपत्र के माध्यम से बैक खाता खुलाया जाये।
प्रस्तुतीकरण - जावेद अनीस
HT ,Bhopal ,7 October 2013 |
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