जावेद अनीस
पिछले साल गर्मियों में लोकसभा चुनाव नतीजे आने के दिन 16 मई 2014 को कर्नाटक के मंगलौर में नरेंद्र दामोदरदास मोदी के जीत के जश्न में दो मस्जिदों पर पथराव हुआ था, मोदी सरकार के गठन के बाद पुणे में कुछ इस तरह से जश्न मनाया गया कि मोहसिन शेख नाम के आईटी इंजीनियर नमाज पढ़ कर अपने घर लौट रहा था इस दौरान हिंदू राष्ट्र सेना के सदस्यों ने उसकी पीट-पीटकर हत्या कर दी। हत्या के बाद आरोपी हिंदू सेना के कार्यकर्ता ने मोबाइल से एक मैसेज फॉरवर्ड किया, जिसमें लिखा था, 'पहली विकेट पड़ी' यानी पहला विकेट गिर गया है। मोहसिन शेख पर यह इल्जाम लगाया गया था कि उसने सोशल साइट पर शिवसेना प्रमुख प्रमुख बाल ठाकरे और छत्रपति शिवाजी के आपत्तिजनक तस्वीरों को शेयर किया था। हालांकि घटना के वक्त मोहसिन के साथ रहे उसके दोस्त रियाज ने खुलासा किया कि मोहसिन को भीड़ ने इसलिए निशाना बनाया क्योंकि वह 'मुस्लिम टोपी' पहने हुए था और लंबी दाढ़ी रखे था। रियाज उस वक्त किसी तरह से अपनी जान बचा कर भाग निकला था। इसके कुछ दिनों के बाद महाराष्ट्र में ही शिवसेना के एक सांसद द्वारा एक रोजेदार के मुंह में जबरदस्ती रोटी ठूसे जाने का मामला सामने आया था ।
पहली बार हर साल दशहरे पर नागपुर में होने वाला राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यक्रम का प्रसारण दूरदर्शन पर किया गया, इस दौरान इसकी झांकी दिखाई गई और संघ प्रमुख मोहन भागवत का पूरा भाषण दिखाया गया। मोहन भागवत ने अपने भाषण में केरल में जिहादी गतिविधियों और गोरक्षा जैसे मुद्दों का ज़िक्र किया। यह सरकारी मशीनरी का खतरनाक दुरुपयोग था और साथ ही सन्देश भी कि आने वाले दिनों में मोदी सरकार के लिए संघ परिवार और उससे जुड़े संगठनों की क्या अहमियत रहने वाली है। देश के शीर्ष इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने इसपर सवाल उठाते हुए कहा कि “आर.एस.एस. एक सांप्रदायिक हिन्दू संगठन है, यह एक गलत परंपरा की शुरुआत है।’ इसपर तत्कालीन सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावेड़कर ने इस तरह के सवाल उठाने वालों को जवाब दिया कि “लोग आर.एस.एस. प्रमुख को सुनना चाहते हैं..सवाल तो ये उठना चाहिए कि अब तक इस वार्षिक कार्यक्रम को क्यों नहीं दिखाया जाता था।" खुद प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट किया कि “आर.एस.एस. प्रमुख मोहन भागवत ने अपने भाषण में सामाजिक सुधारों के जो मुद्दे उठाए हैं वो आज भी प्रासंगिक हैं।” साथ ही साथ उन्होंने भागवत के भाषण का लिंक भी सांझा किया।
मोदी सरकार के शुरुवाती दिनों में ही इसी तरह का एक और मामला सामने आया था जिसमें तेलंगाना के एक भाजपा विधायक ने पूरी दुनिया में भारतीय महिला टेनिस खिलाडी के रुप में पहचान बना चुकीं टेनिस स्टार सानिया मिर्जा को “पाकिस्तानी बहु” का खिताब देते हुए उनके राष्ट्रीयता पर सवाल खड़ा किया था। इसी कड़ी में गोवा के एक मंत्री दीपक धावलिकर का वह बयान काबिले गौर है जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत हिन्दू राष्ट्र बन कर उभरेगा।‘
नयी सरकार के गठन के बाद पिछले एक सालों में लगातार ऐसी घटनायें और कोशिशें हुई हैं जो ध्यान खीचती हैं, इस दौरान धार्मिक अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ हिंसा बढ़ी है और उनके बीच असुरक्षा की भावना मजबूत हुई है, देश के लोकतान्त्रिक संस्थाओं पर हमले हुए हैं और भारतीय संविधान के उस मूल भावना का लगातार उलंघन हुआ है जिसमें देश के सभी नागरिकों को सुरक्षा, गरिमा और पूरी आजादी के साथ अपने-अपने धर्मों का पालन करने की गारंटी दी गयी है। मई 2014 में निर्वाचित प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नई सरकार आने के बाद से भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों को आतंकित करने का एक सिलसिला सा चल पड़ा है। संघ परिवार के नेताओं से लेकर केंद्र सरकार और भाजपा शासित राज्यों के मंत्रियों तक हिन्दू राष्ट्रवाद का राग अलापते हुए भडकाऊ भाषण दिए जा रहे हैं, नफरत भरे बयानों की बाढ़ सी आ गयी है, पहले छः महीनों में “लव जिहाद”, “घर वापसी” जैसे कार्यक्रम चलाये गये, 2015 में गणतंत्र दिवस के दौरान केंद्र सरकार द्वारा जारी विज्ञापन में भारतीय संविधान की उद्देशिका में जुड़े ‘धर्मनिरपेक्ष‘ और ‘समाजवादी‘ शब्दों को शामिल नहीं किया गया था। केंद्र के एक वरिष्ठ मंत्री ने इस विज्ञापन को सही ठहराया। भाजपा की सहयोगी पार्टी शिवसेना ने तो इन शब्दों को संविधान की उद्देशिका से हमेशा के लिए हटा देने की वकालत ही कर डाली थी। दरअसल मोदी सरकार के सत्ता में आते ही संघ परिवार बड़ी मुस्तैदी से अपने उन एजेंडों के साथ सामने आ रहा है, जो काफी विवादित रहे है, इनका सम्बन्ध धार्मिक अल्पसंख्यक समूहों, इतिहास, संस्कृति, धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्रीय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने के करीब नब्बे साल पुराने सपने से है।