Friday, July 24, 2015

मोदी राज, माइनॉरिटीज और बहुसंख्यकवाद के खतरे

जावेद अनीस

पिछले साल गर्मियों में लोकसभा चुनाव नतीजे आने के दिन 16 मई 2014 को कर्नाटक के मंगलौर में नरेंद्र दामोदरदास मोदी के जीत के जश्न में दो मस्जिदों पर पथराव हुआ था, मोदी सरकार के गठन के बाद पुणे में कुछ इस तरह से जश्न मनाया गया कि मोहसिन शेख नाम के आईटी इंजीनियर नमाज पढ़ कर अपने घर लौट रहा था इस दौरान हिंदू राष्ट्र सेना के सदस्यों ने उसकी पीट-पीटकर हत्या कर दी। हत्या के बाद आरोपी हिंदू सेना के कार्यकर्ता ने मोबाइल से एक मैसेज फॉरवर्ड किया, जिसमें लिखा था, 'पहली विकेट पड़ी' यानी पहला विकेट गिर गया है। मोहसिन शेख पर यह इल्जाम लगाया गया था कि उसने सोशल साइट पर शिवसेना प्रमुख प्रमुख बाल ठाकरे और छत्रपति शिवाजी के आपत्तिजनक तस्वीरों को शेयर किया था। हालांकि घटना के वक्त मोहसिन के साथ रहे उसके दोस्त रियाज ने खुलासा किया कि मोहसिन को भीड़ ने इसलिए निशाना बनाया क्योंकि वह 'मुस्लिम टोपी' पहने हुए था और लंबी दाढ़ी रखे था। रियाज उस वक्त किसी तरह से अपनी जान बचा कर भाग निकला था। इसके कुछ दिनों के बाद महाराष्ट्र में ही शिवसेना के एक सांसद द्वारा एक रोजेदार के मुंह में जबरदस्ती रोटी ठूसे जाने का मामला सामने आया था । 

पहली बार हर साल दशहरे पर नागपुर में होने वाला राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यक्रम का प्रसारण दूरदर्शन पर किया गया, इस दौरान इसकी झांकी दिखाई गई और संघ प्रमुख मोहन भागवत का पूरा भाषण दिखाया गया। मोहन भागवत ने अपने भाषण में केरल में जिहादी गतिविधियों और गोरक्षा जैसे मुद्दों का ज़िक्र किया। यह सरकारी मशीनरी का खतरनाक दुरुपयोग था और साथ ही सन्देश भी कि आने वाले दिनों में मोदी सरकार के लिए संघ परिवार और उससे जुड़े संगठनों की क्या अहमियत रहने वाली है। देश के शीर्ष इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने इसपर सवाल उठाते हुए कहा कि “आर.एस.एस. एक सांप्रदायिक हिन्दू संगठन है, यह एक गलत परंपरा की शुरुआत है।’ इसपर तत्कालीन सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावेड़कर ने इस तरह के सवाल उठाने वालों को जवाब दिया कि “लोग आर.एस.एस. प्रमुख को सुनना चाहते हैं..सवाल तो ये उठना चाहिए कि अब तक इस वार्षिक कार्यक्रम को क्यों नहीं दिखाया जाता था।" खुद प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट किया कि “आर.एस.एस. प्रमुख मोहन भागवत ने अपने भाषण में सामाजिक सुधारों के जो मुद्दे उठाए हैं वो आज भी प्रासंगिक हैं।” साथ ही साथ उन्होंने भागवत के भाषण का लिंक भी सांझा किया।

मोदी सरकार के शुरुवाती दिनों में ही इसी तरह का एक और मामला सामने आया था जिसमें तेलंगाना के एक भाजपा विधायक ने पूरी दुनिया में भारतीय महिला टेनिस खिलाडी के रुप में पहचान बना चुकीं टेनिस स्टार सानिया मिर्जा को “पाकिस्तानी बहु” का खिताब देते हुए उनके राष्ट्रीयता पर सवाल खड़ा किया था। इसी कड़ी में गोवा के एक मंत्री दीपक धावलिकर का वह बयान काबिले गौर है जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत हिन्दू राष्ट्र बन कर उभरेगा।‘

नयी सरकार के गठन के बाद पिछले एक सालों में लगातार ऐसी घटनायें और कोशिशें हुई हैं जो ध्यान खीचती हैं, इस दौरान धार्मिक अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ हिंसा बढ़ी है और उनके बीच असुरक्षा की भावना मजबूत हुई है, देश के लोकतान्त्रिक संस्थाओं पर हमले हुए हैं और भारतीय संविधान के उस मूल भावना का लगातार उलंघन हुआ है जिसमें देश के सभी नागरिकों को सुरक्षा, गरिमा और पूरी आजादी के साथ अपने-अपने धर्मों का पालन करने की गारंटी दी गयी है। मई 2014 में निर्वाचित प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नई सरकार आने के बाद से भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों को आतंकित करने का एक सिलसिला सा चल पड़ा है। संघ परिवार के नेताओं से लेकर केंद्र सरकार और भाजपा शासित राज्यों के मंत्रियों तक हिन्दू राष्ट्रवाद का राग अलापते हुए भडकाऊ भाषण दिए जा रहे हैं, नफरत भरे बयानों की बाढ़ सी आ गयी है, पहले छः महीनों में “लव जिहाद”, “घर वापसी” जैसे कार्यक्रम चलाये गये, 2015 में गणतंत्र दिवस के दौरान केंद्र सरकार द्वारा जारी विज्ञापन में भारतीय संविधान की उद्देशिका में जुड़े ‘धर्मनिरपेक्ष‘ और ‘समाजवादी‘ शब्दों को शामिल नहीं किया गया था। केंद्र के एक वरिष्ठ मंत्री ने इस विज्ञापन को सही ठहराया। भाजपा की सहयोगी पार्टी शिवसेना ने तो इन शब्दों को संविधान की उद्देशिका से हमेशा के लिए हटा देने की वकालत ही कर डाली थी। दरअसल मोदी सरकार के सत्ता में आते ही संघ परिवार बड़ी मुस्तैदी से अपने उन एजेंडों के साथ सामने आ रहा है, जो काफी विवादित रहे है, इनका सम्बन्ध धार्मिक अल्पसंख्यक समूहों, इतिहास, संस्कृति, धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्रीय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने के करीब नब्बे साल पुराने सपने से है।

Sunday, July 19, 2015

हेडगेवार का पथ: मिथक और यथार्थ

– सुभाष गाताडे

'आधुनिक भारत के निर्माता: डाक्टर केशव बलिराम हेडगेवार’ के बहाने चन्द बातें '

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आनुषंगिक संगठन भाजपा के केन्द्र में तथा कई राज्यों में सत्तारोहण के बाद शिक्षा जगत उनके खास निशाने पर रहा है। विभिन्न अकादमिक संस्थानों में अपने विचारों के अनुकूल लोगों की महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्ति करने से लेकर, स्वतंत्रामना अकादमिशियनों पर नकेल डालने के प्रयासों से लेकर, पाठयक्रमों में बदलावों तक इसे कई तरीकों से अंजाम दिया जा रहा है। पिछले दिनों केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्राी सुश्री इराणी ने संघ से सम्बधित शैक्षिक संगठनोें से प्रस्तावित नयी शिक्षा नीति के मसविदे के बारे में बात की, जिसका प्रारूप नवम्बर में रखे जाने की योजना है। इसके अलावा विभिन्न संस्थानों और विश्वविद्यालयों में खाली हुए या होने वाले पदों पर नियुक्तियों के मसलों पर भी बात हुई।

सूबा राजस्थान – जो केन्द्र में सत्तासीन भाजपा सरकार की कई नीतियों के लिए एक किस्म की प्रयोगशाला की तरह काम करता रहा है, फिर चाहे श्रमिक कानूनों में बदलावों का मामला हो, पंचायतों के चुनावों में खड़े रहने के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता तय करने का मामला हो – एक तरह से शिक्षा जगत में आसन्न बदलावों के मामले में भी एक किस्म की ‘मिसाल’ कायम करता दिख रहा है। स्कूलों के रैशनलायजेशन/ यौक्तिकीकरण के नाम पर सतरह हजार सरकारी स्कूलों को आदर्श स्कूल में मिला देने का मामला हो या पूर्ववर्ती अशोक गहलोत सरकार द्वारा कायम हरिदेव जोशी पत्राकारिता विश्वविद्यालय को बन्द करने का निर्णय हो या राजीव गांधी ट्राइबल युनिवर्सिटी को उदयपुर से डुंगरपुर जिले के बनेश्वर धाम जैसे अधिक दुर्गम इलाके में भेजने का मामला हो, उसने इस दिशा में कई कदम बढ़ाए है। अब अपने ताज़े फैसले में उसने संघ के संस्थापक सदस्य केशव बलिराम हेडगेवार की जीवनी को खरीदने की सिफारिश राज्य के कालेज पुस्तकालयों की है। अपने सर्क्युलर में शिक्षा विभाग की तरफ से कहा गया है कि कालेज के पुस्तकालय अकादमिक राकेश सिन्हा द्वारा लिखित ‘आधुनिक भारत के निर्माता: डाक्टर केशव बलिराम हेडगेवार’ नाम से किताब को पुस्तकालय हेतु मंगवा लें।

प्रस्तुत निर्णय की तीखी प्रतिक्रिया हुई है, राज्य सरकार पर आरोप लगा है कि वह शिक्षा के केसरियाकरण को बढ़ावा दे रही है। प्रस्तुत कदम को ‘देश के युवाओं के मनमस्तिष्क पर हिन्दू राष्ट्र की मानसिकता लादने के तौर पर, सामाजिक विभाजन पैदा करने के े कदम के तौर पर’ देखा जा रहा है। यह भी आरोप लगे हैं कि उसका मकसद है युवाओं के मनों को हिन्दू बनाम गैरहिन्दू के आधार पर बांटना, उपरी तौर पर सांस्क्रतिक और धार्मिक तौर पर बहुवचनी दिखना, मगर एक ऐसे समाज को प्रचारित करना जो हिन्दू समाज व्यवस्था से निर्धारित हो।’

याद रहे कि प्रस्तुत किताब का प्रकाशन भाजपा की अगुआई वाले राजग गठबन्धन सरकार के पहले दौर में – वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में हुआ था, तथा प्रस्तुत किताब के विमोचन समारोह में स्वयंसेवक प्रधानमंत्राी, उपप्रधानमंत्राी से लगायत तत्कालीन संघ सुप्रीमो सुदर्शन तथा कई सारे वरिष्ठ मंत्राीगण उपस्थित थे लेकिन इन सबके बावजूद यह बात छिप नहीं पायी थी कि प्रस्तुत किताब में हेडगेवार के मूल्यांकन के बारेमें संघ के चन्द वरिष्ठ नेता नाखुश थे । प्रस्तुत किताब मंे किये गये हेडगेवार के मूल्यांकन को लेकर एक समय संघ के मुखपत्रा ‘आर्गनायझर’ के सम्पादक रहे श्री के आर मलकानी द्वारा उठाये गये आक्षेपों के बारेमें राजधानी के प्रमुख अंग्रेजी दैनिक (टाईम्स आफ इण्डिया,2 अप्रैल 2003, फाउंडर्स बायोग्राफी स्प्लिटस परिवार, अक्षय मुकुल) ने समाचार भी दिया था।

Wednesday, July 15, 2015

Modasa - It is just a beginning

- Subhash Gatade

How Hindutva Supremacists are rushing to give themselves Clean Chit in terror related cases?

I

Whether investigations into Hindutva terror related cases are changing course? A series of apparently unconnected developments definitely strengthen the belief.

Close on the heels of renowned public prosecutor Rohini Salian's revelations that she is being pressurised to go slow on the Malegaon bomb blast case (2008) and news of no of witnesses turning hostile in the Ajmer bomb blast case (2007) and sudden decision of the NIA to shift the Sunil Joshi murder case back to M.P, has come the news that the NIA has finally decided to close the Modasa bomb blast case citing 'insufficient evidence'. 

As is being rightly said it is the first concrete indication that with the assumption of power by the BJP investigations into Hindutva terror related cases a shift in emphasis is visible. Perhaps an indication of the changed times is the statement by a senior Minister that there is 'nothing like Hindu terror in the country' despite being aware of the fact that the NIA, the premier investigating agency formed after 2008 terror attack in Mumbai to focus on terror related cases, is handling at least a sixteen high profile cases supposedly involving Hindutva terrorists and many of their top bosses are still under scanner.

Bomb blast at Modasa, part of Sabarkantha district then and recently made into a separate district, which witnessed one death and injuries to many, is one of the least explored bomb blast in the country. The following write-up tries to discuss the blast, discusses the prevalent ambience then when bombs were discovered at different places without anyone claiming responsibility for it, the interim findings of the NIA when it took over the particular case during the UPA II regime and the announcement by the then home minister P Chidambaram that the central probe agency has achieved a “breakthrough” in the 2008 Modasa (Gujarat) blast case.

The sudden turnaround by the NIA is baffling and incomprehensible, to say the least. 

II

Ramzan, the period when Muslims observe fast for a month, proves especially painful for Abida Ghori and her husband, both from Modasa, a newly carved out district from Gujarat. No not that they are not able to withstand the strenuous routine which is expected of a religious person, the particular period brings back memories of their only son Jamal Abdeen Ghori, hardly 15 years old then, who died in a bomb blast in Suka Bazar, seven years back just two days prior to Id when the people were about to begin their evening prayers (Sept. 29, 2008).

Abida can recollect each moment of his last goodbye when he had rushed outside to buy few things for the next day Sehri (eating something before dawn), when a low intensity bomb which was kept in a Hero Honda Passion motorcycle (GJ 9 R-2896) parked outside the Suka Bazar mosque exploded killing Jamal Abedeen on the spot and injured 16 others. She later learnt that the motorcycle used in the blast was having a fake number plate. Jamal was a bright lad in studies and work and a darling of the whole neighbourhood who had chalked out many plans for the coming days with his siblings. Little could he have the premonition that he would not be around to witness the celebrations, and would be buried deep in a graveyard in the town ?

Few days back Abida has learned from a local reporter that the police has closed the investigations in the case and she would never be able to know who killed her only son for no fault of him. She was not surprised to hear this as she has seen the behaviour of the police and administration people who had never bothered to visit her once all these intervening years. In fact, from day one she was not hopeful about the police who had exhibited connivance with the communal elements during the 2002 riots and in fact, the person who was handling the Modasa blast case was infamous for such behaviour. 

From one of her relatives who lived in Ahmedabad she had learnt that this particular police officer was reported to have told victims seeking protection then ‘today your time has come . We have been told not to help. These are orders from the top.” She was also informed that one of the worst massacres of Muslims happened in an area called Naroda Patiya, Ahmedabad which was then under the jurisdiction of this man only. 

Wednesday, July 8, 2015

Confronting Discrimination - New Issue of Critique Magazine

New Issue of Critique "Confronting Discrimination" is out. Critique Magazine, March-August, 2015, Volume: 3 Issue: 2. Pg. 48. Rs. 30 /-. Critique is brought out by Delhi University chapter of New Socialist Initiative. Sharing below the cover of this issue and the content list.



Content

1. Editorial: Confronting Discrimination

2. सम्पादकीय: भेदभाव के विरोध में 

3. White-washing the Paints on the Wall: A Reflection on Racism - Amrapali Basumatary

4. सिक्के के दो पहलू हैं निजी और राजनीतिक - सिंथुजन वरथराजा 

5. Why its Difficult to See Eye to Eye - Vikramaditya Sahai