Tuesday, August 18, 2020

THE STRUCTURAL CONTRADICTIONS OF INDIAN DEMOCRACY AND THE RISE OF THE BJP : PROF PRATAP BHANU MEHTA

 

Democracy Dialogues Lecture Series ( Webinar)
Organised by New Socialist Initiative,16 August 2020



2nd lecture

Topic: The Structural Contradictions of Indian Democracy and the rise of the BJP

 Abstract:

This talk explores the deep social transformations that have made the dominance of the BJP possible. It will take a longer view of the trajectory of Indian democracy and explore the profound changes in social and economic identities underway that have prepared a propitious ground for the rise of the BJP.

The Speaker: Prof Pratap Bhanu Mehta

Internationally renowned scholar and political scientist Prof Pratap Bhanu Mehta taught at Harvard, at New York University and at JNU. He was the Vice Chancellor of the Ashoka University till recently and served as the President of the premier think tank, Centre for Policy Research. Educated at Oxford and a Ph.D. from Princeton University, Prof Mehta is a columnist at Indian Express, a leading public intellectual and a bold and thoughtful voice for reason and justice. Among many honours and prizes to his credit, he is recipient of the Infosys Prize, the Adisheshiah Prize and the Amartya Sen Prize.

 About the Democracy Dialogues series :

The idea behind this series - which we would like to call 'Democracy Dialogues' - is basically to initiate as well as join in the on-going conversation around this theme in academic as well as activist circles.

We feel that the very idea of democracy which has taken deep roots across the world, has come under scanner for various reasons. At the same time we have been witness to the ascendance of right-wing forces and fascistic demagogues via the same democratic route. There is this apparently anomalous situation in which the spread and deepening of democracy have often led to generating mass support for these reactionary and fascistic forces.

Coming to India, there have been valid concerns about the rise of authoritarian streak among Indians and how it has helped strengthen BJP's hard right turn. The strong support for democracy here is accompanied by increasing fascination towards majoritarian-authoritarian politics. In fact, we would like to state that a vigorous electoral democracy here has become a vehicle for hindutva-ite counterrevolution.

The inaugural lecture in the series was delivered by Prof Suhas Palshikar on 12 th July 2020. The theme of Prof Palshikar’s presentation was TRAJECTORY OF INDIA’S DEMOCRACY AND CONTEMPORARY CHALLENGES.


साझा बयान : बुद्धिजीवियों-मानवाधिकारकर्मियों को फ़र्ज़ी आरोपों के तहत फंसाये जाने के विरोध में


जन संस्कृति मंच, प्रगतिशील लेखक संघ, दलित लेखक संघ, प्रतिरोध का सिनेमा, इप्टा, संगवारीन्यू सोशलिस्ट इनिशिएटिव और जनवादी लेखक संघ ने प्रशांत भूषण को अदालत की अवमानना का दोषी क़रार दिए जाने तथा भीमा-कोरेगाँव और दिल्ली दंगों के मामलों में बुद्धिजीवियों-मानवाधिकारकर्मियों को फ़र्ज़ी आरोपों के तहत फंसाये जाने के विरोध में जारी साझा बयान

              

भारतीय लोकतंत्र का संकट लगातार गहराता जा रहा है. अभिव्यक्ति की आज़ादी और वाजिब माँगों के लिए चलने वाले संघर्ष का जैसा दमन मौजूदा निज़ाम में हो रहा है, उसकी मिसाल आज़ाद भारत के इतिहास में ढूँढे नहीं मिलेगी. सबसे ताज़ा उदाहरण स्वाधीनता दिवस की पूर्व संध्या पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रशांत भूषण को अदालत की अवमानना का दोषी ठहराया जाना है. यह विचारणीय है कि फ़ैसले में उन्हें भारतीय लोकतंत्र के जिस महत्त्वपूर्ण स्तम्भ की बुनियाद को अस्थिरकरने के प्रयास का दोषी पाया गया है, उसकी अस्थिरता के मायने क्या हैं और उसके वास्तविक कारक कौन-से हैं/हो सकते हैं! पर यह जितना भी विचारणीय हो, सवाल है कि क्या आप विचार कर भी सकते हैं? इस तरह के विचार-विमर्श की गुंजाइश/स्वतंत्रता/अधिकार को बहुत क्षीण किया जा चुका है और ऐसा जान पड़ता है कि जिनके ऊपर रीज़नेबल रेस्ट्रिक्शन्सके दायरे में अभिव्यक्ति की आज़ादी को सुनिश्चित करने का दारोमदार है, वे खुद आगे बढ़कर उस आज़ादी का दमन कर रहे हैं. पिछले कुछ समय में दो घटनाओं को बहाना बनाकर सामाजिक-राजनैतिक कार्यकर्त्ताओं, मानवाधिकार-कर्मियों और लेखकों-बुद्धिजीवियों की गिरफ़्तारी, या तफ़्तीश के नाम पर उत्पीड़न के सिलसिले ने जो गति पकड़ी है, वह बेहद चिंताजनक है. भीमा-कोरेगाँव मामले और उत्तर-पूर्वी दिल्ली के दंगों के असली अपराधी बेख़ौफ़ घूम रहे हैं जबकि इन्हीं मामलों में फ़र्जी तरीक़े से बड़ी संख्या में सामाजिक कार्यकर्त्ताओं और बुद्धिजीवियों को गिरफ़्तार किया जा चुका है. केंद्र के मातहत काम करने वाली राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (एनआईए) और दिल्ली पुलिस इन मामलों में पूरी बेशर्मी से अपनी पक्षधर भूमिका निभा रही हैं. ऐसा लगता है कि नियंत्रण एवं संतुलन के सारे लोकतांत्रिक सरंजाम ध्वस्त हो चुके हैं.

 इधर बीबीसी और कारवाँ पर छपी कई रपटों ने यह साबित कर दिया है कि भीमा-कोरेगाँव और दिल्ली दंगों की जांच न केवल पक्षपातपूर्ण तरीक़े से चल रही है, बल्कि असली अपराधियों को बचाने और सरकारी नीतियों के आलोचक कर्मकर्त्ताओं को फँसाने के लिए निहायत फ़र्ज़ी कहानियाँ भी बनाई जा रही हैं. जैसे, बकौल बीबीसी, दिल्ली पुलिस की बनाई एक कहानी यह कहती है कि दिल्ली दंगों के साज़िशकर्त्ता उमर ख़ालिद, ताहिर हुसैन और ख़ालिद सैफ़ी ने 8 जनवरी को ही तय कर लिया था कि अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प के भारत आगमन के समय दिल्ली में दंगे कराये जाएँगे, जबकि ट्रम्प की यात्रा की ख़बर ही सबसे पहले 14 जनवरी को सामने आई थी!

 बीते तीन हफ़्तों में ही दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. हैनी बाबू की गिरफ़्तारी और प्रो. अपूर्वानंद (हिन्दी विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय), प्रो. पी के विजयन (अंग्रेजी विभाग, हिन्दू कॉलेज) और प्रो. राकेश रंजन (अर्थशास्त्र, श्रीराम कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स) से हुई पूछताछ, जिसमें उन्हें संजीदा मामलों में फँसाने के बहुत मज़बूत इशारे और इरादे पढ़े जा सकते हैं, एनआईए और दिल्ली पुलिस के पक्षपातपूर्ण रवैये के ताज़ातरीन उदाहरण हैं.

 अल्पसंख्यकों और दलितों का अनवरत जारी दमन-उत्पीड़न, जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 का असंवैधानिक और जबरिया ख़ात्मा, सीएए और देशव्यापी एनआरसी लाने की कोशिश, पूरे देश पर एकरूपता थोपने की हिन्दुत्ववादी मुहिम, किसानों-मज़दूरों और पूरी मेहनतकश जनता के लिए लगातार बदतर हालत पैदा करने वाली नीतियाँ, और इन सबके ख़िलाफ़ आलोचनात्मक सोच व्यक्त करने वाले चिंतकों-कलाकारों-कार्यकर्त्ताओं का चौतरफ़ा दमन--यह हमारे दौर की पहचान बन गयी है. हम मौजूदा निज़ाम द्वारा पैदा किये गए इन हालात की निंदा करते हैं और यह कहना चाहते हैं कि इस चौहत्तरवें स्वाधीनता दिवस पर हम अपने देश की आज़ादी का यह हश्र होता देख, जश्न के तमाम सरकारी शोर-शराबों के बीच, अज़हद नाख़ुश हैं.

 हम सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन एकजुट होकर भीमा-कोरेगाँव और दिल्ली दंगों के नाम पर गिरफ़्तार किये गए सभी लेखकों, कलाकारों, पत्रकारों और मानवाधिकार-कर्मियों की रिहाई की माँग करते हैं. हम प्रो. अपूर्वानंद, प्रो. पी के विजयन और प्रो. राकेश रंजन को इन मामलों में फँसाने की कोशिशों की निंदा करते हैं. हम प्रशांत भूषण के बारे में आला अदालत के फ़ैसले को न्यायसंगत मानने से इनकार करते हैं और इस सम्बन्ध में आये अनेक क़ानून-विशेषज्ञों की इस राय से अपना इत्तेफाक़ ज़ाहिर करते हैं कि यह फ़ैसला सबसे मूल्यवान मौलिक अधिकार--अभिव्यक्ति के अधिकार--की पूरी तरह से अनदेखी करता है.

 

जन संस्कृति मंच | प्रगतिशील लेखक संघ | दलित लेखक संघ | प्रतिरोध का सिनेमा | संगवारी | इप्टा न्यू सोशलिस्ट इनिशिएटिव | जनवादी लेखक संघ

Tuesday, August 11, 2020

(Webinar) The Structural Contradictions of Indian Democracy and the Rise of the BJP'' by Prof Pratap Bhanu Mehta

 

Democracy Dialogues Lecture Series ( Webinar)
Organised by New Socialist Initiative


II nd Lecture

''The Structural Contradictions of Indian Democracy and the Rise of the BJP''

By- Prof Pratap Bhanu Mehta Scholar, Columnist, Public Intellectual


Sunday, 16th August,2020, 6 pm

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Zoom meeting link :

https://us02web.zoom.us/j/88567486836?pwd=TTlYTWpwbUZ4SHRSa3dJUTdYcndRZz09

Abstract :

This talk explores the deep social transformations that have made the dominance of the BJP possible. It will take a longer view of the trajectory of Indian democracy and explore the profound changes in social and economic identities underway, that have prepared a propitious ground for the rise of the BJP.

The Speaker:

Internationally renowned scholar and political scientist Prof Pratap Bhanu Mehta taught at Harvard, at New York University and at JNU. He was the Vice Chancellor of the Asoka University till recently and served as the President of the premier think tank, Centre for Policy Research. Educated at Oxford and a Ph.D. from Princeton University, Prof Mehta is a columnist at Indian Express, a leading public intellectual and a bold and thoughtful voice for reason and justice. Among many honours and prizes to his credit, he is recipient of the Infosys Prize, the Adisheshiah Prize and the Amartya Sen Prize.

About the Democracy Dialogues series :

The idea behind this series - which we would like to call 'Democracy Dialogues' - is basically to initiate as well as join in the on-going conversation around this theme in academic as well as activist circles.

We feel that the very idea of democracy which has taken deep roots across the world, has come under scanner for various reasons. At the same time we have been witness to the ascendance of right-wing forces and fascistic demagogues via the same democratic route. There is this apparently anomalous situation in which the spread and deepening of democracy have often led to generating mass support for these reactionary and fascistic forces.

Coming to India, there have been valid concerns about the rise of authoritarian streak among Indians and how it has helped strengthen BJP's hard right turn. The strong support for democracy here is accompanied by increasing fascination towards majoritarian-authoritarian politics. In fact, we would like to state that a vigorous electoral democracy here has become a vehicle for hindutva-ite counterrevolution.

The inaugural lecture in the series was delivered by Prof Suhas Palshikar on 12 th July 2020. The theme of Prof Palshikar’s presentation was TRAJECTORY OF INDIA’S DEMOCRACY AND CONTEMPORARY CHALLENGES.