- सुभाष गताड़े
फैलता दलित विद्रोह और बदहवास हिन्दुत्व ..
Radhika Vemula addresses Dalit Mahasammelan in Una, Photo Courtesy: indianculturalforum.in |
जब मैं पैदा हुआ तब मैं बच्चा नहीं था
मैं एक स्वप्न था, एक विद्रोह का स्वप्न
जिसे मेरी मां, जो हजारों सालों से उत्पीड़ित थी
उसने संजोया था
अब अभी भी मेरी आंखों में अछूता पड़ा है
हजारों सालों की झुर्रियों से ढंका उसका चेहरा
उसकी आंखें, आंसूओं से भरे दो तालाबों ने
मेरे शरीर को नहलाया है ….
– साहिल परमार
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गाय से प्रेम, मनुष्य से नफरत ?
हर अधिनायकवादी परियोजना की विकासयात्रा में ऐसे मुक़ाम अचानक आ जाते हैं कि उसके द्वारा छिपायी गयी तमाम गोपनीय बातें अचानक जनता के सामने बेपर्द हो जाती हैं और बिगड़ते हालात को संभालना उसके लिए मुश्किल हो जाता है। हिन्दुत्व की ताकतें फिलवक्त़ अपने आप को इसी स्थिति में पा रही हैं। गुजरात में उदघाटित होते दलित विद्रोह ने उसके लिए बेहद असहज स्थिति पैदा कर दी है, जो आज भी विकसित होता दिख रहा है।
सौराष्ट्र के उना में 15 अगस्त को ‘उना अत्याचार लडत समिति; की अगुआई में पहुंची दलित अस्मिता यात्रा अब समाप्त हो गयी हो; उसमें शामिल हजारों दलित, जो राज्य के अलग अलग हिस्सों से वहां पहुंचे थे, अब भले घरों की लौट गए हों, मगर उनका यह संकल्प कि हाथ से मल उठाने, सीवर में उतर कर उसकी सफाई करने या मरे हुए पशुओं की खाल उतारने के काम को अब नहीं करेंगे, आज भी हवा में गूंज रहा है और राज्य सरकार से उनकी यह मांग, कि वह पुनर्वास के लिए प्रति परिवार 5 एकड़ जमीन वितरण का काम शुरू करे वरना 15 सितम्बर से वह रेल रोको आन्दोलन का आगाज़ करेंगे, के समर्थन में नयी नयी आवाज़ें जुड़ रही हैं।
निश्चित ही हिन्दुत्व बिरादरी के किसी भी कारिन्दे ने या उसके अलमबरदारों ने इस बात की कल्पना तक नहीं की होगी कि उनके ‘मॉडल राज्य’ /जहां ‘आप हिन्दु राष्ट में प्रवेश कर रहे हैं, ऐसे बोर्ड गांवों-कस्बों में लगने का सिलसिला 90 के दशक के अन्त में ही उरूज पर पहुंचा था/ में ही उन्हें ऐसी चुनौती का सामना करना पड़ेगा और जिससे उन्होंने बहुत मेहनत से बनाए सकल हिन्दू गठजोड़ की चूलें हिलने लगेंगी। यह उनके आकलन से परे था कि दलित – जो वर्णव्यवस्था में सबसे नीचली कतारों में शुमार किए जाते हैं – जिन्हें हिन्दुत्व की परियोजना में धीरे धीरे जोड़ा गया था, यहां तक कि उनका एक तबका 2002 के गुजरात दंगों की अल्पसंख्यक विरोधी हिंसा में भी शामिल था, वह अलसुबह बग़ावत में उठ खड़े होंगे और गरिमामय जीवन की मांग करते हुए उन्हें चैलेंज देंगे। इतनाही नहीं वह अल्पसंख्यकों को भी अपने साथ जोड़ेंगे और इस तरह हिन्दुत्व की परियोजना की जड़ पर ही चोट पहुंचाएंगे।
जैसा कि इस स्थिति में उम्मीद की जाती है, जब दलितों का यह अप्रत्याशित उभार सामने आया तो उसकी क्या प्रतिक्रिया दी जाए, इसे लेकर वह बाकायदा बदहवासी तथा दिग्भ्रम का शिकार हुए। संघ परिवार के विभिन्न आनुषंगिक संगठनों या चेहरों से जितनी विभिन्न किस्म की आवाज़ें सुनाई दी, वह इसी का प्रतिबिम्बन था। इसमें कोई दोराय नहीं कि एक साथ कई आवाज़ों में बोलना हिन्दुत्व ब्रिगेड की आम रणनीति का हिस्सा रहा है, मगर इस बार मामला वहीं तक सीमित नहीं था। सबसे बड़ा सवाल उनके सामने यही उपस्थित था कि गाय की रक्षा के नाम पर जो ‘परिवार’ के एजेण्डे को आगे बढ़ा रहे थे, ऐसे हमलावरों की हिफाजत करें, और इस तरह पीड़ितों से अपनी दूरी कबूल करे या दूसरी तरफ पीड़ितों की हिमायत करे, हमलावरों की भर्त्सना करें तथा उन पर सख्त कार्रवाई की मांग करें तथा दलितों को अखिल हिन्दु एकता सूत्र में बनाए रखने की कवायद में जुटे रहें। इस विभ्रम का असर उनके द्वारा जारी वक्तव्यों में भी दिखाई दिया जो इस अवसर पर दिए गए। एक तरफ प्रधानमंत्राी थे जिन्होंने इस घटना के लम्बे समय बाद अपनी चुप्पी तोड़ी और यहां तक कहा कि गोरक्षा के नाम पर अधिकतर असामाजिक तत्व सक्रिय हैं और बताया कि वह गृह मंत्रालय को सूचित करनेवाले हैं कि वह ऐसे तत्वों के बारे में दस्तावेज तैयार करें। प्रधानमंत्राी मोदी के बरअक्स उनके पूर्वसहयोगी विश्व हिन्दू परिषद के लीडर भाई तोगडिया का रूख था, जिन्होंने गोरक्षकों पर लांछन लगाने की निन्दा की और ऐसी कार्रवाई को ‘हिन्दू विरोधी’ कहा। यह दिग्भ्रम समझ में आने लायक था।
दरअसल, ऊना की घटना के बहाने हाल के समयों में यह पहली बार देखने में आ रहा था कि हिन्दुत्व ब्रिगेड अगर अपने एक अहम एजेण्डा – जो गाय के इर्दगिर्द सिमटा है और जिसने उसे राजनीतिक विस्तार में काफी मदद पहुंचायी है – को आगे बढ़ाने की कोशिश करती है तो एक संभावना यह बनती है कि हिन्दु एकता कायम करने के उसके इरादों में दरारें आती हैं। /सुश्री विद्या सुब्रम्हण्यम अपने उत्तर प्रदेश की राजनीति पर केन्द्रित अपने एक आलेख में इस स्थिति को ‘ए रिवर्स राम मंदिर मोमेन्ट’ कहती हैं – देखें: ी http://www.thehindu.com/opinion/lead/its-mayawati-versus-modi-in-up/article9022511.ece? ref=topnavwidget&utm_source=topnavdd&utm_medium=topnavdropdownwidget&utm_campaign=topnavdropdown / उन्मादी ‘गोरक्षकों’ के हमलों का शिकार दलितों के अलावा – जो ‘परिवार’ की राजनीति से ही तौबा कर रहे हैं – किसान आबादी का बड़ा हिस्सा भी गाय के इर्दगिर्द हो रही हिन्दुत्व की राजनीति से परेशान है क्योंकि वह अपने उन पशुओं को बेच पाने में असमर्थ है या उसे उन्हें बहुत कम कीमत पर बेचना पड़ रहा है – जो बूढ़े हो चुके हैं या जिन्होंने दूध देना बन्द कर दिया है। इतनाही नहीं मीट के व्यापार में लगे पंजाब के व्यापारियों ने पिछले दिनों प्रेस कान्फेरेन्स कर इन स्वयंभू गोरक्षकों की हिंसक कार्रवाइयों से अपने व्यवसाय में उन्हें उठाने पड़ रहे नुकसान को रेखांकित करते हुए प्रेस सम्मेलन किया। कहां धार्मिक हिन्दू गाय की पूछ के सहारो वैतरणी पार करने की बात करता है और अब यह आलम था कि हिन्दू धर्म एवं राजनीति के संमिश्रण के सहारे लोकतंत्र में अपनी जड़ ज़माने वाले लोगों के लिए गाय की वही पूछ उनके गले का फंदा बनती दिख रही है। हिन्दुत्व की मौजूदा स्थिति को सन्त तुलसीदास की चौपाई बखूबी बयां करती है ‘भयल गति सांप छछुंदर जैसी ..’