जावेद अनीस
इस देश में एनकाउंटर का स्याह इतिहास है और इसको लेकर हमेशा से ही विवाद रहा है. आम तौर पर एनकाउंटर के साथ फर्जी शब्द जरूर जुड़ता है. मध्यप्रदेश के 61वें स्थापना दिवस से ठीक एक दिन पहले यहाँ भी एक ऐसा ही एनकाउंटर हुआ है जो अपने पीछे कई सवाल छोड़ गया है. आईएसओ प्रमाणित भोपाल सेंट्रल जेल में बंद प्रतिबंधित स्टुडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ़ इंडिया के आठ संदिग्ध फरार हुए और फिर उनका एनकाउंटर कर दिया गया, उसके बाद से इसको लेकर मंत्रियों, अधिकारियों के बयान आपस में मेल नहीं खा रहे हैं और जो वीडियो सामने आये हैं वो भी कई गंभीर सवाल खड़े करते हैं.
एनकाउंटर में मारे गये आठों विचाराधीन कैदियों पर “सिमी” से जुड़े होने सहित देशद्रोह, बम धमाकों में शामिल होने जैसे कई आरोप थे. जेल प्रशासन के मुताबिक ये आठों 31 अक्टूबर की रात जेल की बीस फीट ऊंची दीवार फांद कर भागे थे. भागने के दौरान उन्होंने एक पुलिस कांस्टेबल की हत्या भी कर दी. इस तरह से इस घटनाक्रम में कुल नौ लोग मारे गये हैं. मारे गये आठ विचाराधीन कैदियों में से तीन तो 2013 में मध्य प्रदेश के ही खंडवा जेल से भी फरार हो चुके थे. जिन्हें दोबारा पकड़ कर सेंट्रल जेल में शिफ्ट कर दिया गया था. हालांकि मध्यप्रदेश सरकार इस एनकाउंटर को अपनी उपलब्धि बताते हुए नहीं थक रही है. लेकिन कई ऐसे सवाल है जिनका उसे जवाब देना बाकी है.
सवाल दर सवाल
सिमी संदिग्धों के जेल से भागने और उनके एनकाउंटर को लेकर विपक्ष, मानव अधिकार संघटनों और मीडिया द्वारा कई सवाल खड़े किए गये हैं.
घटना की कवरेज करने वाले जी मीडिया के पत्रकार प्रवीण दुबे ने एनकाउंटर पर बहुत ही गंभीर सवाल उठाये हैं. अपने फेसबुक वॉल पर उन्होंने जो लिखा उसका कुछ अंश इस तरह से है “शिवराज जी, इस सिमी के कथित आतंकवादियों के एनकाउंटर पर कुछ तो है जिसकी पर्दादारी है. मैं खुद मौके पर मौजूद था, सबसे पहले 5 किलोमीटर पैदल चलकर उस पहाड़ी पर पहुंचा, जहां उनकी लाशें थीं. लेकिन सर इनको जिंदा क्यों नहीं पकड़ा गया? मेरी एटीएस चीफ संजीव शमी से वहीं मौके पर बात हुई और मैंने पूछा कि क्यों सरेंडर कराने के बजाय सीधे मार दिया? उनका जवाब था कि वे भागने की कोशिश कर रहे थे और काबू में नहीं आ रहे थे, जबकि पहाड़ी के जिस छोर पर उनकी बॉडी मिली, वहां से वो एक कदम भी आगे जाते तो सैकड़ों फीट नीचे गिरकर भी मर सकते थे. मैंने खुद अपनी एक जोड़ी नंगी आँखों से आपकी फ़ोर्स को इनके मारे जाने के बाद हवाई फायर करते देखा, ताकि खाली कारतूस के खोखे कहानी के किरदार बन सकें. उनको जिंदा पकड़ना तो आसान था फिर भी उन्हें सीधा मार दिया और तो और जिसके शरीर में थोड़ी सी भी जुंबिश दिखी उसे फिर गोली मारी गई एकाध को तो जिंदा पकड लेते. उनसे मोटिव तो पूछा जाना चाहिए था कि वो जेल से कौन सी बड़ी वारदात को अंजाम देने के लिए भागे थे”?
इसी तरह वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता अवधेश भार्गव ने तो इस एनकाउंटर को फर्जी बताते हुए जबलपुर हाईकोर्ट में एक याचिका करते हुए सवाल उठाया है कि आरोपियों के सेल में ही लगे सीसीटीवी कैमरे खराब क्यों थे? जेल में कैदियों को दो से ज्यादा चादर नहीं दिए जाते हैं ऐसे में आरोपियों के पास जेल की दीवार कूद कर फरार होने के लिए 35 चादरें कहां से आई और जेल के मेन गेट पर लगे सीसीटीवी कैमरे को जांच में शामिल क्यों नही किया गया.
रिहाई मंच ने इस पूरे मामले पर सवाल उठाते हुए बयान जारी किया कि “ठीक इसी तरह अहमदबाद की जेल में थाली, चम्मच, टूथ ब्रश जैसे औजारों से 120 फुट लंबी सुरंग खोदने का दावा किया गया था.”
सीपीआई के राज्य सचिव बादल सरोज का बयान आया कि “भोपाल की एक अति-सुरक्षित जेल से आठ विचाराधीन-अंडरट्रायल-मुजरिमों के फरार हो जाने, उसके बाद उनके एक साथ टहलते हुए अचारपुरा के जंगल में मिलने और "मुठभेड़" में मारे जाने की घटना एक अत्यंत फूहड़ तरीके से गढी गयी कहानी प्रतीत होती है. यह जितनी जानकारी देती है उससे अनेक गुना सवाल छोड़कर जाती है.”