पेरूमल मुरूगन, सोवेन्द्र
हांसदा शेखर और अब ओमप्रकाश वाल्मिकी
-सुभाष
गाताडे
‘तुम्हारी
महानता मेरे लिए स्याह अंधेरा है..
मैं जानता हूं,/मेरा
दर्द तुम्हारे लिए चींटी जैसा/ और तुम्हारा अपना दर्द पहाड़ जैसा
इसलिए, मेरे और तुम्हारे बीच/ एक फासला
है/जिसे लम्बाई में नहीं/समय से नापा जाएगा।
उस वक्त एक सीमित दायरे में ही उसके
लेखक ओमप्रकाश वाल्मिकी का नाम जाना जाता था। मगर हिन्दी जगत में किताब का जो
रिस्पान्स था, जिस तरह अन्य भाषाओं में उसके अनुवाद
होने लगे, उससे यह नाम दूर तक पहुंचने में अधिक
वक्त नहीं लगा। यह अकारण नहीं था कि इक्कीसवीं सदी की पहली दहाई के मध्य में वह
किताब अंग्रेजी में अनूदित होकर कनाडा तथा अन्य देशों के विश्वविद्यालयों के
पाठयक्रम में शामिल की गयी थी। एक मोटे अनुमान के हिसाब से देश के तेरह अलग अलग
विश्वविद्यालयों में - जिनमें कई केन्द्रीय विश्वविद्यालय शामिल हैं - इन दिनों यह
उपन्यास या उसके अंश पढ़ाए जा रहे हैं।