Sunday, January 31, 2021

(उमंग लाइब्रेरी विज्ञान व्याख्यानमाला - 10) विज्ञान, संस्कृति और लोकमानस -रवि सिन्हा

 science lecture series ( Webinar)
Organised by 
Umang library

  


Umang Library is inviting you to a scheduled Zoom meeting.

 Topic: विज्ञान, संस्कृति और लोकमानस -रवि सिन्हा

Time: Jan 31, 2021 05:00 PM India

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https://us02web.zoom.us/j/89038766683?pwd=MmhGSVRiQjlPa05LL3k4SUJFZHFzQT09

Meeting ID: 890 3876 6683

Passcode: 421989

 

Can science seep into culture and modernity intervene in the social mind? Did it happen only for the western civilization? Will others in the East have science only as a means to prosperity, an instrument of power and a weapon of war? Will Indians have smartphones mostly as an instrument for spreading lies, rumors and hate?

 The popular science series in Hindi organized by Umang Library turns towards discussing such issues at the interface of science and society. Details of the meeting this Sunday, January 31, given below.

 

विज्ञान, संस्कृति और लोकमानस

रवि सिन्हा

 आम धारणा ये है कि विज्ञान कार्य-कारण सम्बन्धों का इलाका है जहाँ जगत की व्याख्या की जाती है,जबकि संस्कृति व्यक्ति और समाज के मानस का तथा परम्परा, नैतिकता और आचार-व्यवहार का वह क्षेत्र है जहाँ जीवन के रूप और जीने के अर्थ प्रस्तावित और निर्धारित होते हैं. दोनों के अन्तर्सम्बन्धों के बारे में भी कुछ आम धारणायें हैं. अति-विज्ञानवादी एक शुद्ध वैज्ञानिक संस्कृति को मानव-जाति का अंतिम गन्तव्य मानेंगे तो संस्कृति की मानविकता पर ज़ोर देने वाले यह कह सकते हैं कि विज्ञान मनुष्य के लिये एक उपकरण से अधिक कुछ नहीं है. बीच के रास्ते भी अपनाये जाते हैं. आइन्स्टाइन जैसा व्यक्ति यह कहता है कि धर्म के बिना विज्ञान लंगड़ा है और विज्ञान के बिना धर्म अंधा है. आधुनिकता के इस युग में विज्ञान एवं संस्कृति का आपसी रिश्ता समाज और इतिहास के सबसे गूढ़ और विवादास्पद विषयों में से एक है.

इस व्याख्यान में इस विषय की एक प्रारम्भिक चर्चा छेड़ी जायेगी. इसके लिये यूरोप में वैज्ञानिक क्रांति का उदाहरण लिया जायेगा और यह देखने की कोशिश की जायेगी कि लगभग आधी सहस्राब्दि के इतिहास में विज्ञान और संस्कृति की अन्तरक्रिया ने लोकमानस में हस्तक्षेप के कैसे उदहारण प्रस्तुत किये. आधुनिक विज्ञान का उद्भव एक अत्यंत जटिल परिघटना थी जो ग्रीक दर्शन के पुनर्जागरण, ईसाई धर्म की अन्दरूनी उथल-पुथल और तदुपरान्त पूँजीवाद के उद्भव के संयुक्त प्रभाव में सम्पन्न हुई. यह आधुनिक विज्ञान सामजिक जीवन में केवल औद्योगिक क्रान्ति और भौतिक जीवन में तकनीक और बाज़ार के योगदान के ज़रिये ही नहीं उतरा. संस्कृति में विज्ञान का एक सीमा तक रचते-बास्ते जाना एक और भी जटिल प्रक्रिया थी जिसमें वैचारिक संघर्षों की भी भूमिका थी और राजनैतिक-सामाजिक संघर्षों की भी.

 विज्ञान और संस्कृति के अन्तर्सम्बन्धों की जटिलता के कारण अति-सामान्यीकृत धारणाओं का प्रचलन आम है. विज्ञान की उपकरण-वादी समझ भी आम है जिसमें वह व्यवस्था और शासक-वर्गों के औज़ार के रूप में प्रकट होता है तथा पूँजीवाद, उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद के सभी अपराधों में संलिप्त माना जाता है. और इसके बावजूद एक सार्वभौमिक आधुनिक विज्ञान से तो किसी को छुटकारा है तो उसका किसी के पास विकल्प है. दुनिया के अधिकांश देशों में विज्ञान प्रायः अपने तकनीकी उत्पादों के रूप में ही पहुंचा है. जीवन पर उसका प्रभाव प्रत्यक्ष है लेकिन संस्कृति के साथ उसकी अंतर्क्रिया और भी जटिल हो गयी है. संस्कृतियों ने विज्ञान से औज़ार और हथियार तो अपना लिए हैं लेकिन उसके विचार को अपने दरवाज़े के बाहर ही खड़ा कर रक्खा है. तो क्या विज्ञान का सांस्कृतिक रूपांतरण में गहराई से शरीक होना और लोकमानस को बड़े पैमाने पर प्रभावित करना एक आकस्मिक घटना थी जो पश्चिमी सभ्यता में तो फलीभूत हुई लेकिन बाक़ी दुनिया में इसकी आशा करना व्यर्थ है?

 यदि आधुनिक विज्ञान सार्वभौमिक है और संस्कृतियाँ अपनी अलग-अलग विशिष्टतायें लिए हुए हैं, तो क्या इनकी परस्पर क्रिया के बारे में यूरोप तथा पश्चिम के उदाहरण से हमारे लिए कोई सबक़ नहीं निकलते? क्या विज्ञान हमारे यहाँ केवल औज़ार और हथियार के रूप में ही स्वीकार्य होगा या उसकी यहाँ की संस्कृति से भी कोई अंतर्क्रिया होगी जिसे समझने और संचालित करने की आवश्यकता है? यदि मन्दिर की रथयात्रा के तर्ज़ पर विज्ञान की रथयात्रा नहीं निकाली जा सकती तो लोकमानस में विज्ञान के हस्तक्षेप के रास्ते कहाँ से निकलेंगें? क्या हम पॉपुलर साइंस के लेक्चर्स से और अन्धविश्वास-उन्मूलन के आन्दोलनों मात्र से समाज में विज्ञान की जगह बना पायेंगें? या हमारा काम यह है कि हम पूँजीवाद के हाथों से छीनकर विज्ञान को वर्ग-संघर्ष का और समाजवाद का हथियार बना दें? तो क्या, अंततः, हमारे लिये भी विज्ञान उपकरण मात्र ही है या हमारी संस्कृति के रूपांतरण में भी, उसे नया और वांछित रूप देने में भी, विज्ञान की भूमिका बनेगी?

 इस व्याख्यान में इस चर्चा की शुरुआत की जायेगी.