Wednesday, May 8, 2013

एन.एस.आई - भोपाल द्वारा आयोजित परिचर्चा "शाहबाग (बांग्लादेश) का जनविद्रोह" का एक संक्षिप्त रिपोर्ट

यह 28 अप्रैल को एन.एस.आई - भोपाल द्वारा आयोजित जनसभा "शाहबाग (बांग्लादेश) का जनविद्रोह" पर एक संक्षिप्त रिपोर्ट है।

पडोसी देश बांग्लादेश इस समय काफी उथल पुथल से गुज़र रहा है जिसका कारण है की 42 साल पहले तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (अब के बांग्लादेश) की मुक्ति संघर्ष में पकिस्तान की सेना का साथ देने वाले और जनता पर तरह तरह के ज़ुल्म ढ़ाने वाले युद्ध अपराधियों एवं उनके संगठनो के खिलाफ कड़ी कार्यवाही की मांग को लेकर लाखों की संख्या में जनता सड़क पर उतर आई है। आन्दोलनकारियों की मांग है कि युध्ह अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा दी जाए और जमात-ए-इस्लामी जैसे संगठनो पर पाबंदी लगा दी जाए और उसके द्वारा संचालित व्यावसायिक एवं अन्य प्रतिष्ठानों पर रोक लगा दी जाए।

बांग्लादेश के जनांदोलन के समर्थन में भोपाल NSI की टीम ने भोपाल में एक परिचर्चा का आयोजन दिनांक 28 अप्रैल 2013 को किया। इस परिचर्चा का मुख्य उद्देश्य बांग्लादेश के आन्दोलनकारियों द्वारा उठाई जा रही मांगो का समर्थन करना और आन्दोलनकारियों द्वारा उठाई जा रही मांगो पर चर्चा करना था और साथ ही भविष्य में ये आन्दोलन का रूप क्या हो सकता है इस पर चर्चा करना भी था। इस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के तौर पर बोनोजित हुसैन उपस्थित थे बोनोजित दिल्ली NSI टीम के सदस्य है।


बोनोजित ने बताया की शाहबाग की क्रांति कई मायनों में खास है ढ़ाका के इस शाहबाग चौक पर जो लोग इतनी बड़ी संख्या में आ कर जमा हुए है और हो रहे है उन सभी का वास्ता वर्त्तमान से कम और इतिहास से ज्यादा है। ये लोग किसी राजनितिक पार्टी के कहने पर यहाँ एकत्रित नहीं हुए है बल्कि 40 साल पहले मुक्ति संग्राम के दौरान अपने ही देश के लोगो को मारने और सताने वाले चरमपंथी युद्ध अपराधियों को सजा दिलवाने के लिए सड़क पर उतर आये है। तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (अब के बांग्लादेश) में 1971 में हुए मुक्ति संघर्ष के दौरान पाकिस्तानी सेना का साथ देने वाले जमात-ए-इस्लामी जैसे संगठनों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्यवाही की जाए। इस समय जनता का इतने आक्रोश पर सड़क पर उतरने का मुख्य कारण यह है कि चार फरवरी को युद्ध अपराध न्यायाधिकरण ने जमात-ए-इस्लामी के सहायक महासचिव अब्दुल कादेर मुल्ला को उम्रकैद की सजा सुनाई, सजा सुनाने के बाद अब्दुल कादेर ने कोर्ट से बहार आकर 'V' का निशान दिखाया जिसका तात्पर्य ये था की उसकी जीत हुई। मुल्ला पर तीन सौ हत्याओं का आरोप है। उस समय बांग्लादेश की तकरीबन 2 लाख महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया था जिसका आक्रोश आज भी लोगो में देखा जा बांग्लादेश के राष्ट्रवादियों और आज की युवा पीढ़ी को यह फैसला मान्य नहीं हुआ। मृत्युदंड से कम कुछ भी नहीं की मांग करते वे ढाका के शाहबाग चौक पर आ गए और वहीं डेरा डाल दिया। शाहबाग आंदोलन के एक सक्रिय कार्यकर्ता और ब्लॉगर की हत्या के बाद तो आंदोलन और भी उफान पर आ गया है।

कुछ प्रतिभागियों के सवाल थे कि क्या यह आवामी लीग के द्वारा ही चलाया जा रहा आन्दोलन तो नहीं है क्यूंकि एकदम चुनाव के समय इस तरह का माहौल सरकार के पक्ष में जाता दिखाई दे रहा है? इसके उत्तर में बोनोजित ने बताया की इतनी बड़ी तादाद में एक साथ आम जनता को सड़क पर लाना सरकार के लिए मुश्किल है, यह जनता द्वारा उठाया गया कदम है लेकिन ये भी सरकार बाहरी तौर से आन्दोलन को मदद कर रही है। परन्तु आन्दोलन द्वारा पहले दिन से यह तय किया गया है की किसी भी राजनैतिक पार्टी को आन्दोलन में नहीं शामिल किया जाएगा। और मुख्यतः युवा लड़कियां इस आन्दोलन का नेतृत्व कर रही है।

साथ ही NSI के सथियों का यह भी पक्ष था की किसी भी वामपंथी दल का इस आन्दोलन को लेकर कोई समर्थन नज़र नहीं आ रहा था और जिस तरह वामपंथी दल कट्टर हिंदुत्व का विरोध करते है उसी प्रकार मुस्लिम कट्टरवाद या किसी अन्य धर्म के कट्टरवाद का भी पुरज़ोर तरीके से विरोध करना चाहिए जिसकी पहल करते हुए NSI द्वारा दिल्ली में भी प्रदर्शन का आयोजन किया गया और इसी कड़ी में भोपाल में भी शाह्बाग आन्दोलन के समर्थन में एक परिचर्चा का आयोजन किया गया।

पृष्ठभूमि: दोस्तों। पडोसी मुल्क बांग्लादेश इन दिनों जबरदस्त उथल पुथल से गुज़र रहा है । आज से ठीक 42 साल पहले संपन्न हुए तत्कालीन पूर्वी पकिस्तान (अब के बांग्लादेश) के मुक्ति के संघर्ष में पाकिस्तान की सेना का साथ देने वाले और जनता पर तरह तरह के ज़ुल्म ढाने वाले युध्ह अपराधियों एवं उनके संगठन के खिलाफ कड़ी कार्यवाही की मांग को लेकर लाखो लाख जनता सड़क पर उतरी है।

आन्दोलनकारियों की दो प्रमुख मांगे है - युध्ह अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा दी जाये तथा जमात-ए-इस्लामी, बांग्लादेश जैसे संगठनो पर पाबन्दी लगा दी जाये और उसके द्वारा संचालित व्यावसायिक एवं अन्य प्रतिष्ठानों पर रोक लगा दी जाये। याद रहे बांग्लादेश स्थित जमात-ए-इस्लामी संगठन के कार्यकर्ताओं ने ना केवल अखंड पकिस्तान के नाम पर बांग्लादेश की आज़ादी का विरोध किया था बल्कि पकिस्तान की सेना द्वारा गठित अर्द्धसैनिक बल "रजाकार" का हिस्सा बनकर आवाम पर तरह तरह के ज़ुल्म भी ढाये थे।

इसमें कोई दोराय नहीं है कि आन्दोलन की व्यापकता के बावजूद खुद बांग्लादेश के अन्दर जमात-ए-इस्लामी के हिमायतियों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है, जिन्होंने आन्दोलन को लेकर संगठित दुष्प्रचार चलाया है। इतना ही नहीं जनता में फूट डालने के लिए जमात से जुड़े लोगो की तरफ से बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों - हिन्दुओं और बौध्हो पर हमले भी चल रहे है।

विडम्बना यही कही जाएगी कि बांग्लादेश की आम जनता द्वारा संचालित इस ऐतिहासिक आन्दोलन को लेकर भारत की धर्मनिरपेक्ष। जनतांत्रिक और वाम ताकतों ने अभी तक चुप्पी ही बरती है। हमारा मनना है कि इस चुप्पी को तोड़ने की ज़रूरत है और बांग्लादेश की इस आम जनता के प्रति अपनी संग्रामी एकजुटता प्रकट करना वक़्त की मांग है।

इसी सन्दर्भ में समाजवाद की नई पहल (NSI) भोपाल द्वारा इसी विषय पर परिचर्चा का आयोजन किया जा रहा है, इस परिचर्चा मिएन आपकी भागीदारी अपेक्षित है।

1 comments:

PAHCHAN said...

maja aa gaya kabhi yuva samvad ye sab karta tha ab NSI ke manch ke madhyam se ho raha hai. par log amuman vahi hai.
kabhi ham bhi --------------------

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