- सुभाष गाताड़े
उस किशोर का नाम एतज़ाज हस्सन बंगश था, जिसे आज की तारीख में एक नए नायक का दर्जा दिया गया है, जिसने अपनी शहादत से हजारों सहपाठी छात्रों की जान बचायी। तालिबानी ताकतों के प्रभुत्ववाले पाकिस्तान के खैबर पख्तुनवा सूबे के शिया बहुल इलाके के एक इब्राहिमजई स्कूल का विद्यार्थी एतज़ाज उस दिन सुबह अपने चचेरे भाई मुसादिक अली बंगश के साथ स्कूल जा रहा था जब रास्ते में मिले एक शख्स को देख कर उनके मन में सन्देह प्रगट हुआ। उन्हीं के स्कूल यूनिफार्म पहना वह युवक उनके ही स्कूल का रास्ता पूछ रहा था। बाकी बच्चे तो वहां से भाग निकले, मगर कुछ अनहोनी देख कर एतज़ाज ने उसे ललकारा, इस हड़बड़ी में उस आत्मघाती बाम्बर ने बम विस्फोट किया। दोनों की वही ठौर मौत हुई और दो लोग घायल हुए। मालूम हो कि उस दिन सुबह की स्कूल असेम्ब्ली के लिए लगभग दो हजार छात्र एकत्रित थे। इस आतंकी हमले के लिए लश्कर ए झंगवी नामक आतंकी संगठन ने जिम्मेदारी ली है।
अपने बेटे की मृत्यु पर उसके पिताजी मुजाहिद अली का कहना था कि यह सही है कि मेरे बेटे ने उसकी मां को रूला दिया, मगर उसने सैकड़ों उन माताओं को अपनी सन्तानों के लिए रोने से बचाया और उसके लिए उसकी मृत्यु का शोक नहीं बल्कि उसकी जिन्दगी को हमें मनाना (celebrate) चाहिए।
Aitazaz Hassan Bangash |
एतज़ाज की इस कुर्बानी ने जहां एक तरफ इसी इलाके की रहनेवाली छात्रा मलाला यूसूफजई का लड़कियों की शिक्षा के लिए चलाए संघर्ष और उसके चलते तालिबानियों द्वारा उस पर किए गए हमले की याद ताजा की है, वहीं दूसरी तरफ उसने पाकिस्तान के इस इलाके में असहमति रखनेवाले लोगों, कलाकारों को झेलनी पड़ती हिंसा को भी नए सिरेसे उजागर किया है।
अभी पिछले साल की बात है पश्तो भाषा की उभरती हुई मलिका ए तरन्नुम गज़ाला जावेद – जो बहुत कम उम्र में ही अपने गायन से शोहरत की बुलन्दियों पर पहुंची थीं, उसकी पेशावर की सड़कों पर हत्या कर दी गयी थी, मरते दम जिनकी उम्र महज 24 साल थी। गज़ाला, अर्थात मृगनयनी, जो प्रेम के गीत गाती थी, अपने समाज एवं संस्कृति के गीत गाती थी। पश्तो के उसकेे गीत न केवल पाकिस्तान में बल्कि अफगाणिस्तान में भी बहुत लोकप्रिय थे। निजी जिन्दगी में भी वह विद्रोहिणी थी, जिसने परम्पराओं के बोझ तले दबे पितृसत्तात्मक समाज में अपने पति से अलग होने का खुद फैसला किया था। पाकिस्तान की स्वात घाटी की रहनेवाली गज़ाला, जहां पर इन दिनों तालिबानियों की तूती बोलती है, जिन्होंने संगीत, नृत्य आदि कोे ‘गैरइस्लामिक’ घोषित किया है जिनकी वजह से गज़ाला को तीन साल पहले वहां से भागना पड़ा था। उनकी जान को जिस तरह का ख़तरा था, जिसकी वजह से उन्हें अपनी रेकार्डिंग भी दुबई में करनी पड़ती थी।