Thursday, January 16, 2014

पाकिस्तान की दूसरी आवाज़ें

- सुभाष गाताड़े 

उस किशोर का नाम एतज़ाज हस्सन बंगश था, जिसे आज की तारीख में एक नए नायक का दर्जा दिया गया है, जिसने अपनी शहादत से हजारों सहपाठी छात्रों की जान बचायी। तालिबानी ताकतों के प्रभुत्ववाले पाकिस्तान के खैबर पख्तुनवा सूबे के शिया बहुल इलाके के एक इब्राहिमजई स्कूल का विद्यार्थी एतज़ाज उस दिन सुबह अपने चचेरे भाई मुसादिक अली बंगश के साथ स्कूल जा रहा था जब रास्ते में मिले एक शख्स को देख कर उनके मन में सन्देह प्रगट हुआ। उन्हीं के स्कूल यूनिफार्म पहना वह युवक उनके ही स्कूल का रास्ता पूछ रहा था। बाकी बच्चे तो वहां से भाग निकले, मगर कुछ अनहोनी देख कर एतज़ाज ने उसे ललकारा, इस हड़बड़ी में उस आत्मघाती बाम्बर ने बम विस्फोट किया। दोनों की वही ठौर मौत हुई और दो लोग घायल हुए। मालूम हो कि उस दिन सुबह की स्कूल असेम्ब्ली के लिए लगभग दो हजार छात्र एकत्रित थे। इस आतंकी हमले के लिए लश्कर ए झंगवी नामक आतंकी संगठन ने जिम्मेदारी ली है।

अपने बेटे की मृत्यु पर उसके पिताजी मुजाहिद अली का कहना था कि यह सही है कि मेरे बेटे ने उसकी मां को रूला दिया, मगर उसने सैकड़ों उन माताओं को अपनी सन्तानों के लिए रोने से बचाया और उसके लिए उसकी मृत्यु का शोक नहीं बल्कि उसकी जिन्दगी को हमें मनाना (celebrate) चाहिए।

 Aitazaz Hassan Bangash
एतज़ाज की इस कुर्बानी ने जहां एक तरफ इसी इलाके की रहनेवाली छात्रा मलाला यूसूफजई का लड़कियों की शिक्षा के लिए चलाए संघर्ष और उसके चलते तालिबानियों द्वारा उस पर किए गए हमले की याद ताजा की है, वहीं दूसरी तरफ उसने पाकिस्तान के इस इलाके में असहमति रखनेवाले लोगों, कलाकारों को झेलनी पड़ती हिंसा को भी नए सिरेसे उजागर किया है।

अभी पिछले साल की बात है पश्तो भाषा की उभरती हुई मलिका ए तरन्नुम गज़ाला जावेद – जो बहुत कम उम्र में ही अपने गायन से शोहरत की बुलन्दियों पर पहुंची थीं, उसकी पेशावर की सड़कों पर हत्या कर दी गयी थी, मरते दम जिनकी उम्र महज 24 साल थी। गज़ाला, अर्थात मृगनयनी, जो प्रेम के गीत गाती थी, अपने समाज एवं संस्कृति के गीत गाती थी। पश्तो के उसकेे गीत न केवल पाकिस्तान में बल्कि अफगाणिस्तान में भी बहुत लोकप्रिय थे। निजी जिन्दगी में भी वह विद्रोहिणी थी, जिसने परम्पराओं के बोझ तले दबे पितृसत्तात्मक समाज में अपने पति से अलग होने का खुद फैसला किया था। पाकिस्तान की स्वात घाटी की रहनेवाली गज़ाला, जहां पर इन दिनों तालिबानियों की तूती बोलती है, जिन्होंने संगीत, नृत्य आदि कोे ‘गैरइस्लामिक’ घोषित किया है जिनकी वजह से गज़ाला को तीन साल पहले वहां से भागना पड़ा था। उनकी जान को जिस तरह का ख़तरा था, जिसकी वजह से उन्हें अपनी रेकार्डिंग भी दुबई में करनी पड़ती थी।

Friday, January 10, 2014

Statement: Condemn Attack on AAP Headquarters, Defend Freedom of Expression, Oppose Politics of Hurt Sentiments

New Socialist Initiative Condemns Attack on AAP Headquarters!

Defend Freedom of Expression, Oppose Politics of Hurt Sentiments!

New Socialist Initiative condemns the attack on the headquarters of AAP (Aam Aadmi Party) office at Kaushambi, Ghaziabad by vigilantes of the Hindutva Brigade and demands stern action against the culprits. Given the inordinate delay by the police in reaching the place and nabbing the hooligans in the case of an emergent political party and high-profile politicians, one can only imagine the safety and security of common citizen under such dispensation.

It is distressing that each time any individual or group has expressed views on the violation of human rights by Armed Forces protected by the draconian Armed Forces Special Powers Act, frenzied jingoism by the rightwing forces as well as by the print and electronic media turn to the rhetoric of hurt sentiments. It is equally distressing that the Aam Aadmi Party too succumbed to such jingoism, found it necessary to distance itself from Prashant Bhushan and turned the question of human rights violation by the armed forces into a question of national integrity.

Demanding deeper investigation into the real masterminds of this attack New Socialist Initiative also urges every peace and justice loving person to raise its voice over growing attacks on freedom of expression so that voices of majoritarianism, intolerance and bigotry be put on the defensive.

It has been widely reported that on 8th January 2014 the Hindu Raksha Dal attacked and vandalized the Aam Aadmi Party office in Kaushambi (Uttar Pradesh), protesting the comments made by AAP leader and Supreme Court Senior Advocate Prashant Bhushan on the presence of the Armed Forces in Kashmir. However, this form of hooligan organized violence and vandalism in the name of hurt sentiments is not new to us. Over the years we have been witness to this well established pattern of violence against anyone who has dared to make a statement about the brutality and impunity of the Armed Forces, particularly where the Armed Forces Special Powers Act is implemented as in Kashmir and the Northeast, as well as their presence in other parts like Central India. People have been booked under false cases, beaten and threatened. Whether it was the same Prashant Bhushan who was badly beaten up by a fanatic organization or the Bajrang Dal cadre chasing down and attacking those protesting the unjust hanging of Afzal Guru at Jantar Mantar in broad daylight and under the full protection of the police, or the vandalism at the screening of Sanjay Kak's documentary, Jashn-e-Azadi, in Hyderabad, or the hooliganism of the BJP's student wing ABVP against the rally demanding a repeal of the AFSPA in Delhi University, the message is always loud and clear: dudh mangoge kheer denge, Kashmir mangoge cheer denge. This time too it was said by Hindu Raksha Dal as they staged a protest against “AAP's stand” on Kashmir. The attackers said that Hindus are hurt because of Prashant Bhushan's statement on Kashmir which led them to stage a protest outside the party office and engage in vandalism.

Aam Aadmi party, ironically, had already rebutted Prashant Bhushan's statement and in response clarified that Kashmir is an integral part of India, that the presence of the Armed Forces was a question of national security, that there was no question of a referendum on this issue and that Prashant Bhushan's statement in no way reflected the position of the party. 

Wednesday, January 8, 2014

हरियाणा सरकार, पूंजीपतियों की गुलामी छोड़ो, मेहनतकशों के हक़ पर हमला बंद करो!


पिछले 18 महीने से जेल में बंद 148 मारुति मजदूरों को रिहा करो!

15 से 31 जनवरी: जन जागरण यात्रा

मारुति मज़दूर और उनके परिवारों की 
 कैथल से दिल्ली पदयात्रा को सफल बनाएं

कैथल मिनीसचिवालय से शुरू होकर जींद, रोहतक, झज्जर, गुडगाँव होके दिल्ली पहुंचेगी जहाँ, 31 जनवरी दोपहर 2 बजे दिल्ली जंतर मंतर पर राष्ट्रपति को ज्ञापन

साथियो! 

न्याय और हक़ के संघर्ष में हमें लम्बा समय बीत गया है। गुडगाँव स्थित मारुति मानेसर के हम लगभग ढ़ाई हजार मज़दूर दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। फर्जी आरोपों में आज भी हमारे 148 साथी जेल की सलाखों में बन्द हैं। मालिक-सरकार-पुलिस-प्रशासन का मिलाजुला हमला बरकरार है। लगातार दमन झेलकर भी हमारा संघर्ष जारी है। 

वे सबकुछ करने को तैयार, सभी अफसर उनके 

18 जुलाई, 2012 को गुडगाँव के मानेसर स्थित मारुति कंपनी की घटना के बारे में सिर्फ भारत ही नहीं, विदेशों में भी मजदूरों के खिलाफ जबरदस्त प्रचार हुआ| हरियाणा सरकार, केंद्र सरकार, बड़े बड़े राजनैतिक दलों और बड़े मिडिया हॉउस ने मारुति मजदूरों के जायज संघर्ष को जानबूझ कर ऐसे प्रचारित किया ताकि लोगो को लगे कि मारुति के 3000 मजदूर असल में ‘क्रिमिनल’ थे| हरियाणा की आम जनता को समझाया गया की मारुति के मज़दूर कंपनी में गुंडा-गर्दी कर रहे थे| लेकिन सच्चाई धीरे धीरे सामने आ रही है| सच यह है की मारुति जैसी बड़ी कंपनियों को देश के संविधान का उलंघन करने के लिए हरियाणा सरकार ने खुली छुट दे रखी हैं| इन सभी कंपनियों में अवैध ठेका प्रथा चलती हैं, ट्रेनिंग के नाम पर तीन-तीन साल तक मामुली दिहाड़ी पर खटाया जाता है, मजदूरों के साथ जानवरों की तरह व्यवहार किया जाता हैं| हमारा संघर्ष इसी शोषण के खिलाफ शुरू हुआ| 

हम मारुति के मजदूर, मारुति प्रबंधन के अवैध कामों को संवैधानिक तरीके से रोकने के लिए यूनियन बनाने के लिए एकजुट हुए| तब से सिर्फ मारुति प्रबंधन ही नही, हरियाणा सरकार भी हमारे 

पीछे पड़ गयी| 4 जून, 2011 से यह युद्ध जारी है| एक तरफ है दुनिया के बड़े पूंजीपतियों में से एक मारुति सुजुकी ग्रुप और हरियाणा सरकार – दूसरी तरफ हैं हम सामान्य मारुति मजदूर| 

हमारा संघर्ष जायज है, इसलिए हमने संघर्ष की राह नहीं छोड़ी, इसको मजबूत बनाने के लिए तन-मन-धन लगा दिया| इसी मुद्दे पर आज हम हरियाणा और दिल्ली के मजदूर-किसान-छात्र-नौजवान के पास पहुँच रहे हैं| हम जानते हैं की जनता की ताकत के सामने मारुति और उनके यारों की ताकत कुछ भी नहीं| हमने जनता की सलाह पर, उनकी मदद पर, उनके बल पर अपने संघर्ष को जारी रखा हैं, और हक़ मिलने तक जारी रखेंगे, देश के मेहनतकशों की एकता को आगे बढाएंगे| जनता के ऊपर जारी हर तरह के अन्याय, जुल्म और अपमान का मुकाबला करने के लिए हम अपनी एकता, जागरूकता, साहस, समझदारी को हर पल मजबूत बनाने का संकल्प ले रहे है| 

हरियाणा सरकार और उनकी एसआईटी:

हरियाणा सरकार के कारनामें अपरम्पार हैं। बेगुनाह मज़दूरों को जबरिया गुनाहगार साबित करने के लिए वह अजब-गजब करिश्में कर रही है। 18 जुलाई मारुति मानेसर में हुए कांड की जांच के लिए हरियाणा सरकार ने एक कमेटी बनाई थी| इस कमेटी का नाम था ‘स्पेसल इन्वेस्टिगेटिंग टीम’(SIT)| हमारे जो 148 साथी आज 18 महीने से जेल में बंद है उन सभी की गिरफ्तारी SIT के नेतृत्व में हुई| हरियाणा पुलिस की महिमा ऐसी की 18 जुलाई रात 7 बजे से मारुति कंपनी की ड्रेस पहने जो भी मज़दूर दिखा, उसे गिरफ्तार कर लिया था| गवाही का खेल तो और निराला है| जेल में बंद 148 मजदूर साथियों में से 90 मजदूर ऐसे है जिनके गवाहों ने इन मजदूरों के नाम के पहले अंग्रेजी अक्षर के अनुसार गवाही की, और 20/25 नाम की जिम्मेदारी गवाहों ने आपस में बांट ली है (जैसे की, जिस जिस मजदूर के नाम का पहला अंग्रेज़ी अक्षर A से M तक है, उसकी जिम्मेदारी एक गवाह ने, तो M से S तक के लिए दुसरे गावाह ने...)यह झूठी गवाहियाँ, हरियाणा पुलिस द्वारा जेल में बंद हमारे 148 साथियों के खिलाफ न्यायालय में पेश की, चालान का हिस्सा है| हमारे वकील द्वारा अदालत में इस सच्चाई को पेश करने के बावजूद इसकी अनदेखी इसका प्रमाण है कि न्यायालय भी मारुति जैसी कंपनी की ताकत से डरती हैं|