Sunday, April 6, 2014

जनतंत्र की रक्षा के लिए तमाम मतदाताओं से अपील

- पीपुल्स अलायन्स फॉर डेमोक्रेसी एण्ड सेक्युलेरिजम

प्रिय नागरिक साथियों,

सडसठ साल पहले आज़ाद भारत ने एक जनतांत्रिक संविधान को स्वीकारा जिसने सभी की सहभागिता को सुनिश्चित करते हुए समानता और न्याय के लिए एक मंच का निर्माण किया। हमारे संविधान निर्माता इस बात के प्रति चिन्तित थे कि जाति, सम्प्रदाय और धर्म के विभाजनों से परे एक धर्मनिरपेक्ष समाज का निर्माण किया जाए।

सोचने की बात है कि आखिर उस जनतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष दृष्टि का क्या नतीजा निकला ? आबादी का विशाल हिस्सा आज भी भयानक गरीबी में जी रहा है। करोड़ों भारतीयों को उनके बुनियादी अधिकारों से वंचित रखा जाता है। ताकतवर पूंजीपतियों, पूर्वाग्रहों से लैस नौकरशाहों और बेईमान राजनीतिक नुमाइन्दों के बीच मौजूद अपवित्रा गठबन्धनों से ऐसी प्रवृत्तियों को शह मिलती है। इसका नतीजा है कि भारत की जनता की विशाल आबादी के हितों के लिए नहीं बल्कि धनी लोगों के हितों एव हकों की रक्षा के लिए राजनीतिक व्यवस्था के संचालित होने का खतरा बढ़ रहा है। हमारे समाज में तरह तरह की साम्प्रदायिक ताकतें फलती फूलती दिखती है। 1984 में दिल्ली में हुए खूनखराबे से लेकर 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के दिनों से ही उनकी बढ़ोत्तरी दिख रही है। मीडिया, पुलिस, नौकरशाही और कार्यपालिका सभी स्थानों पर पूर्वाग्रहों से लैस व्यवहार सरेआम दिखता है। हम लोग राज्य के अपराधीकरण को देख रहे हैं। इसका एक उदाहरण है मुल्क में चारों तरफ निजी सेनाओं का उभार।

सोलहवीं लोकसभा के लिए हो रहे चुनाव हमारे सामने जनतंत्रा की रक्षा करने का अवसर है। अपना ‘सांस्कृतिक’ मुखौटा फेंकते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इसमें एक सीधे सहभागी के तौर पर उभरा है। उसने भाजपा के मुख्य निर्णयों में सीधे हस्तक्षेप किया है। उनकी विचारधारा राष्ट्रवाद के एक संकीर्ण नज़रिये पर टिकी है। कथित परिवार तमाम साम्प्रदायिक घटनाओं और 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस में लिप्त रहा है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबन्धन के प्रधानमंत्राी पद के उम्मीदवार के लिए प्रचण्ड मात्रा में पैसे और काडरों की लामबन्दी की गयी है। यह शख्स एक अकार्यक्षम मुख्यमंत्राी है जो गोधरा के अपराध वक्त और उसके बाद पूरे सूबे में बलात्कार, हत्या, आगजनी और लूटपाट का जो सिलसिला चला, उस वक्त राज्य की बागडोर सम्भाले था। कई सारे मामलों में न्याय को पाने के लिए गुजरात से बाहर से हस्तक्षेप की आवश्यकता पड़ी है। ज़किया जाफरी के पति पूर्व सांसद एहसान जाफरी और उनके पड़ोसियों का कतलेआम किया गया और वह आज भी इस आपराधिक षडयंत्रा में मोदी को अभियुक्त बनाने के लिए अदालत में हस्तक्षेप की हुई हैं। एक पुलिसिया जांच के रिपोर्ट को न्यायिक रिहाई के तौर पर पेश किया जा रहा है। वर्ष 2003 में मोदी के प्रतिद्धंदी हरेन पांडया की कथित आतंकवादी हमले में हत्या हुई – उसकी विधवा आज भी न्याय के लिए संघर्षरत है। मोदी ने अपनी लोकप्रियता को फर्जी मुठभेड़ों और हत्या के षडयंत्रों के खुलासे से बढ़ाने की कोशिश की है, जिनमें से कई मामले आज भी अदालत के सामने हैं। गुजरात की आतंकवादी विरोधी पुलिस की इकाइयों को एक महिला की जासूसी करने का निर्देश दिया जाता है जिस पर आतंकवादी होने का आरोप तक नहीं है। गुजरात में कानून और व्यवस्था के ध्वस्त होने के लिए नरेन्द्र मोदी सीधे जिम्मेदार है। हम इस बात को भी नोट कर सकते हैं कि गुजरात की राज्य विधानसभा हर साल औसतन 30-32 दिन चली है।

मोदी के एक मंत्राी को गैरकानूनी खदानें चलाने के लिए दोषी साबित किया जा चुका है। दूसरी पर जब तक दंगे में शामिल होने के लिए षडयंत्र रचने एवं हत्या करने के आरोप नहीं लगे तब तक वह मंत्रिपद सम्भालती रहीं। मोदी ने वर्ष 2003 से राज्य लोकायुक्त की नियुक्ति का दस साल तक लगातार विरोध किया। जब राज्यपाल और मुख्य न्यायाधीश ने इस पद के लिए वर्ष 2011 में न्यायमूर्ति आर ए मेहता का चयन किया तो मोदी ने इस नियुक्ति को चुनौती देने के लिए करोड़ो रूपए कानूनी फीस में खर्च किए। जब सुप्रीम कोर्ट ने इस नियुक्ति को सही ठहराया तब राज्य सरकार ने मेहता के साथ सहयोग करने से इन्कार किया जिसके चलते उन्होंने पदत्याग करने का निर्णय लिया। अन्ततः उसने लोकायुक्त अधिनियम में संशोधन किया तथा उसे एक दन्तविहीन इकाई में बदल दिया। दरअसल मोदी ने अपने दोस्त तथा कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्राी येदियुरप्पा की नियति से जरूरी सबक लिया होगा। इसके बावजूद वह भ्रष्टाचार मिटाने की बात करते रहते हैं।

गुजरात शासन प्रणाली की यह चन्द विशिष्टताएं हैं। इस मॉडल का क्या प्रभाव होगा अगर केन्द्र सरकार पर मोदी और उनके कार्पोरेट हिमायतियों का नियंत्राण हो जाता है ? पटेल की मूर्ति के खिलाफ शान्तिपूर्ण प्रदर्शन या भावनगर में नाभिकीय पॉवर स्टेशन या पर्यावरणीय उल्लंघन को लेकर हुए प्रदर्शनों को पुलिस दमन का शिकार होना पड़ा है। गुजरात उन राज्यों में शुमार हैं, जहां सूचना अधिकार कार्यकर्ताओं पर सबसे अधिक हमले हुए। गुजरात दलित उत्पीड़न का गढ़ बना हुआ है। सर्वेक्षण बताते हैं कि राज्य के 90 फीसदी से अधिक गांवों में आजभी अस्पृश्यता मौजूद है और अहमदाबाद जैसे शहर में आज भी हाथ से मैला उठाने की प्रथा अस्तित्व में है। मामूली कीमत पर जमीन पर कब्जे, पर्यावरणीय नियमनों का उल्लंघन, मजदूर अधिकारों का छीजन, फोन टैपिंग या कानून के राज्य के प्रति तिरस्कार एक तरह से मजदूरों और किसानों, महिलाएं, जनतांत्रिक अधिकार कार्यकर्ताओं और ईमानदार अधिकारियों को प्रभावित करेगा। मोदी ने अपने पद का इस्तेमाल करते हुए भारत के रक्षा मंत्राी पर यह आरोप लगाया है कि वह पाकिस्तानी एजेण्ट है। जल्द ही ऐसा कोईभी व्यक्ति जो मोदी की आलोचना की हिम्मत करेगा, उसके साथ देशद्रोही जैसा सलूक किया जाएगा। क्या हम यही सब बातें अपने प्रधानमंत्राी में चाहते हैं ?

यह भारतीय जनतंत्र के स्वास्थ्य के लिए यह जरूरी है कि ऐसी राजनीतिक ताकतों को काबू में रखा जाय और उन्हें राजनीतिक शिकस्त दी जाए। विकास के उनके तमाम दावों के बावजूद, कार्पोरेट हितों के साथ उनके गहन रिश्तों को देखते हुए हमें राजनीतिक तानाशाही के खतरे के प्रति सचेत रहना चाहिए। अगर यह सिलसिला जारी रहा तो वह न केवल इस या उस विशिष्ट समूह के अधिकारों को खतरे में डाल देगा बल्कि संवैधानिक जनतंत्रा का अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाएगा। स्थायी सरकार की बातों के बहकावे में न आएं। सिर्फ तानाशाह ही सोचते हैं कि संविधान द्वारा गारंटीशुदा नागरिक अधिकारों की तुलना में स्थिरता अधिक महत्वपूर्ण है।

हमें चाहिए कि हम ऐसी राजनीतिक ताकतों को चुनें जो इन्सानियत, बराबरी और इन्साफ के हक़ में खड़ी हों। भारत के एक समावेशी होने न कि विघटनकारी होने के विचार को चुनें। अपने वोट को सामाजिक-आर्थिक मुक्ति के लिए इस्तेमाल करें। न्याय पाने के अपने अधिकार , स्वतंत्र रूप से चिन्तन, विरोध करने और बेहतर जीवन के लिए संघर्ष करने के अपने अधिकार की हिफाजत करें। साम्प्रदायिक नफरत को खारिज करें और परस्पर सम्मान और सम्वाद के रास्ते को चुनें। यह हमारा वोट है। यह हमारा मुल्क है। हम सभी से आवाहन करते हैं कि आने वाले चुनावों में अधिनायकवादी ताकतों को शिकस्त दें।

एकजुटता के साथ
‘जनतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के लिए जनसमन्वय’
(पीपुल्स अलायन्स फॉर डेमोक्रेसी एण्ड सेक्युलेरिजम)

फीडबैक, पूछताछ और सुझावों के लिए हमें इस पते पर लिखें : padsprocess@gmail.com

1 comments:

Narinder Sandhu said...

Your Message is not clear: How to bell the cat? Whom not to vote is clear, but to vote is not clear? There are so many parties claim they are secular and for people's democratic rights.

Post a Comment