- प्रगतिशील जन मंच
विचार कभी मरते नहीं है !
तर्कशीलता की मशाल कभी बुझेगी नहीं !
पश्चिमी दिल्ली के रोहिणी इलाके में प्रोफेसर कलबुर्गी की हत्या के विरोध में धरना और कैंडल लाइट जुलूस।
कन्नड भाषा के महान विद्वान प्रोफेसर मल्लेशप्पा माडिवालप्पा कलबुर्गी - जिन्होंने 103 किताबें लिखी थीं और सैकड़ों लेख लिखे थे - की रविवार, 30 अगस्त को कर्नाटक के धारवाड नगर में सुबह के वक्त उनके घर के अन्दर हत्या कर दी गयी। अंधश्रद्धा के खिलाफ जनजागरण में लगे और साम्प्रदायिक ताकतों का लगातार विरोध करते रहे 77 वर्षीय प्रोफेसर कलबुर्गी लगातार फासीवादियों के निशाने पर रहे थे और उन्हें बार बार धमकियां मिल रही थीं। इसके चलते उन्हें सुरक्षा भी प्रदान की गयी थी, मगर कुछ समय पहले प्रोफेसर कलबुर्गी ने उसे लौटा दिया था।उनका कहना था कि विचारों की रक्षा के लिए बन्दूकों की जरूरत नहीं होती है।
भारत में तर्कशीलता विरोध की ताकतों के बढ़ते मनोबल का ही नतीजा है कि दो साल के अन्दर हत्या की यह तीसरी घटना सामने आयी है। अगस्त 2013 में पुणे में अंधश्रद्धा निर्मूलन के लिए संघर्षरत रहे नरेन्द्र दाभोलकर - जिन्होंने अंधश्रद्धा विरोध को एक जनान्दोलन की शक्ल दी थी - सुबह के वक्त अज्ञात हमलावरों के हाथों मारे गए थे और फरवरी 2015 में कोल्हापुर में सुबह पत्नी के साथ टहल कर लौट रहे कम्युनिस्ट नेता गोविन्द पानसरे, जो तर्कशीलता को लेकर अपने संघर्ष के लिए जाने जाते थे, वह मारे गए थे और अब यह तीसरी हत्या है।
यह बात रेखांकित करनेवाली है कि प्रोफेसर कलबुर्गी की हत्या एक ऐसे समय में हुर्इ है जब दक्षिण एशिया के इस हिस्से में बहुसंख्यकवादी ताकतें अपने अपने इलाकों में कहीं धर्म तो कही समुदाय के नाम पर स्वतंत्रमना
आवाजों को खामोश करने में लगी हैं। कलबुर्गी की हत्या के चन्द रोज पहले ढाका में निलोय चक्रवर्ती नामक ब्लागर के घर में घुस कर इस्लामिस्ट अतिवादियों ने उनकी बर्बर ढंग से हत्या की थी। दो साल के अन्दर ऐसे पांच ब्लागर्स - जो अपने कलम के जरिए वहां धर्मनिरपेक्षता की आवाज़ बुलन्द किए थे - वहां इस्लामिस्टों के हाथों मारे गए हैं। ध्यान रहे कि पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में भी स्वतंत्रामना ताकतें, लोग जो तर्क की बात करते हैं, न्याय, प्रगति एवं समावेशी समाज की बात करते हैं, वे भी कटटरपंथ के निशाने पर हैं।
प्रोफेसर कलबुर्गी और दक्षिण एशिया के इस हिस्से में सक्रिय ऐसे तमाम तर्कशीलों, स्वतंत्रामना, प्रगतिकामी बुद्धिजीवियों और कार्यकर्ताओं के लिए श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए हमें इस बात पर अवश्य सोचना चाहिए कि
आखिर हम कैसा समाज बनाना चाहते हैं ? क्या ऐसा समाज वाकर्इ प्रगति कर सकता है जहां सन्देह करने की, सवाल उठाने की आज़ादी पर ताले लगे हों, जहां तर्क करने की, विचार करने पर पाबन्दी लगी हों।
1 comments:
taqat aur tasalli dono haasil hui. yahaa lko mein aj shamm ko protest march hai parivartan chowk se GPO tak . jisme umeed hai ki cultural- political- literary jamaat shamil hogi .
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