स्वदेश कुमार सिन्हा
4 जून 2006
- “जब अयोध्या का विवादित ढांचा गिराने से हमें कोई रोक नही सका’ तो राम मन्दिर बनाने से कौन रोकेगा.”
“गंगा में मूर्ति विर्सजन
के दौरान होने वाला प्रदूषण सबको दिखता है , लेकिन बकरीद के समय हजारो निरीह पशु काशी में काटे गये हैं उनका खून गंगा जी में
बहा है क्या यह प्रदूषण नही है” ?
जून 2015 - “जो लोग योग का विरोध
कर रहे हैं उन्हे भारत छोड़ देना चाहिए ,
जो सूर्य नमस्कार को नही मानते उन्हे समुद्र में डूब जाना चाहिए.”
अगस्त 2015 – “मुसलमानो की आबादी तेजी से बढ़ना खतरनाक रूझान है यह
एक चिन्ता का विषय है केन्द्र सरकार को उनकी जनसंख्या घटने के लिए सख्त कदम उठाने चाहिए.”
फरवरी 2015 –“हम पूरे हिन्दुस्तान को हिन्दू बनवा देंगे, पूरी दुनिया में भगवा फहरवा देंगे। मक्का में गैर मुस्लिम
और वैटिकन सिटी में गैर ईसाइ नही जा सकते, हमारे यहाँ सभी लोग आ सकते है। ’’
अगस्त 2015- ’लव जेहाद’ को लेकर योगी जी का एक वीडियो सामने आया था जिसमें वे
अपने समर्थको से कहते हैं कि हमने फैसला किया है कि अगर वे एक हिन्दू लड़की का धर्म
परिवर्तन कराते हैं तो हम सौ मुस्लिम लड़कियों का धर्म परिवर्तन करायेंगे। बाद में योगी
ने इस वीडियो के बारे में कहा कि हम इस मुद्दे पर कोई सफाई नही देना चाहते।
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ये योगी आदित्यनाथ के
कुछ चुने हुए विवादित बयान हैं अपने उग्र हिन्दुत्व की अवधारणा में संघ परिवार को भी
पीछे छोड़ने वाले अजय सिंह विष्ट उर्फ योगी आदित्यनाथ के उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री
चुने जाने पर न केवल देश के धर्म निरपेक्ष मानस अपितु बहुत से ’’उदार हिन्दुत्व ’’ के पैरोकार भी आश्चर्यचकित हैं. वास्तव में इस चयन ने कई पुराने मिथको को ध्वस्त
किया है तथा कुछ नये गढ़े भी हैं. सन् 2002 में गोधरा हत्याकाण्ड
के बाद समूचे गुजरात में भड़के दंगो ने मुस्लिमो के नरसंहार का योगी ने खुलकर समर्थन
किया था, उन्होने गोधरा हत्याकाण्ड के बाद एक विशाल जनसभा में कहा था, “मैने
मोदी जी से बात की है और उनसे कहा है कि हमारी तरफ से एक विकेट गिरने पर दूसरे पक्ष
की दस विकेट लेना अपने घरो पर केसरिया झण्डा फहराइये और अपने आस-पड़ोस के मुसलमानो की
संख्या गिनिये। हमें जल्दी ही कुछ करना पड़ सकता है”,(इण्डियन एक्सप्रेस के वर्गीज जार्ज की रिपोर्ट).
“यू.पी. अब गुजरात की
राह” पर शीर्षक से अपनी साझा जाँचरिपोर्ट राष्ट्रीय मानवाधिकार आयेाग को भेजते हुए
(5 जुलाई 2002)
में पिपुल्स यूनियन फार सिविल लिबर्टी एवं “इन्साफ” ने आयोग के अध्यक्ष के सामने ’शुद्ध जघन्य अपराधिक कुकृत्यो को साम्प्रदायिक झगड़े
का रूप देने की योगी आदित्यनाथ की हरकतो एवं पुलिस प्रशासन द्वारा उनके आक्रामक रूख
के समक्ष सुरक्षात्मक रहने की नीति के चलते मुस्लिमों के भारी भय और आतंक का माहौल पैदा होने की चर्चा
की थी.पुलिस प्रशासन का भारी पैमाने पर साम्प्रदायिकीकरण और योगी द्वारा उन्हे खुलेआम
निर्देशित करने की परिघटना का विशेष रूप से उल्लेख करते हुए , उन्होने कानून का राज स्थापित करने के लिए विशेष कदम
विशेष कदम उइाने की आयोग से अपील की थीं.गुजरात 2002 में वहां पर हुए भयानक साम्प्रदायिक दंगो के बाद देश भर के अनेक वामपंथी विचारको
तथा समाजशास्त्रिो का मानना था कि गुजरात की सामाजिक संरचना मूलतः एक वणिक समाज की
है। वहां पर बड़ी ब्यापारिक पूँजी होने तथा जनवादी आन्दोलनो तथा ट्रेड यूनियनो के अभाव
के कारण वहां पर व्यापक दंगों का कारण बना. इसी कारण संघ परिवार ने गुजरात को हिन्दुत्व
की प्रयोगशाला बना दिया. गुजरात जैसे दंगे अन्य राज्यो में नही हो सकते.
परन्तु पूर्वी उ.प्र.
मूलतः गोरखपुर मण्डल तथा उसके आसपास योगी आदित्यनाथ ने अपनी साम्प्रदायिक राजनीति का
वर्चस्व कायम करके इस मिथक को ध्वस्त कर दिया. यह अकारण नही है कि स्वाधीनता संग्राम
के लिए अपनी ऐतिहासिक भूमिका के लिए जाना जाने वाला पूर्वी उत्तर प्रदेश आजादी के बाद
के दौर में कम्युनिस्ट एवं जनवादी ताकतो की आधार भूमि रहा है अब यह इलाका एक ऐसे योगी
की समर भूमि बना है जो आज हिन्दुतत्व के उग्र एजेण्डे के साथ उपस्थित है. पूर्वी उ0प्र0 का गोरखपुर शहर और आस-पास
का इलाका लम्बे समय से हिन्दुत्ववादी संगठनो विशेष रूप से हिन्दु महासभा, एवं संघ के निशाने पर रहा है. यह महज संयोग नही है कि
सरस्वती शिशु मन्दिरो की जो श्रृंखला संघ ने स्थापित की जिसने बाद में व्यापक रूप धारण
कर लिया उसकी एक तरह से शुरूआत यहीं से हुयी थी. 1952 में गोरखपुर में संघ द्वारा संचालित पहला स्कूल खोला गया था लेकिन यह इस शहर की
जनतांत्रिक शक्तियों की निरंतर दखल का नतीजा रहा था कि अभी तक शहर में साम्प्रदायिक
शक्तियां कभी सिविल समाज पर हावी नही हो सकी. यह अकारण नही है कि मुल्क के बॅटवारे
के समय भी यहाॅ दंगे नही हुए थे. 1992 के बाबरी मस्जिद विध्वंसक
के बाद भी यहाँ कोई साम्प्रदायिक दंगा नही हुआ.
1998 में योगी आदित्यनाथ पहली बार भाजपा के सांसद चुने गये।
इससे पहले गोरखपुर में गोरखनाथ मंदिर के एक महंथ दिग्विजय नाथ 1967-70 में निर्दलीय 1970 के बाद महन्थ अवेैद्यनाथ
निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीते. 1951 से लेकर 1998 तक महन्थ अवैद्यनाथ दो बार लगातार दो बार सांसद चुने
गये यह दोनो पूर्व सांसद भी हिन्दुत्ववादी माने जाते थे. लेकिन इनका हिन्दुवाद गोरखपुर
नगर या कहा जा सकता है कि गोरखनाथ मंदिर के इर्द गिर्द ही सीमित था.गोरखनाथ मठ पर लोगो
की अपार आस्था होने के कारण उन्हे लोग वोट देते थे.कई बार तो उन्हे मुस्लिमो तक के
वोट मिले थे. 1989-90 के आस-पास गोरखपीठ के
तत्कालीन महन्थ अवैद्यनाथ ’’राम जन्म भूमि मुक्ति
यज्ञ समिति” के अध्यक्ष बनाये गये
वही से गोरखनाथ मंदिर से उग्र हिन्दुत्व की शुरूआत हुयी.
इस तथ्य से बहुत कम लोग
अवगत होंगे कि 30 दिसम्बर 89 से 1 जनवरी 90 तक ’’भारतीय इतिहास कांग्रेस
का पचासवां अधिवेशन गोरखपुर विश्वविद्यालय में हुआ था. उस समय मै भी इसी विश्वविद्यालय
में अध्ययनरत था.31 दिसम्बर की शाम को जब
इतिहास कांग्रेस का एक सत्र् चल रहा था गोरखपुर के तात्कालीन सांसद महन्थ अवैद्यनाथ
जबरजस्ती अपने समर्थको के साथ हाल में घुस गये तथा मंच पर कब्जा कर लिया विश्वविद्यालय
की तत्कालीन कुलपति श्रीमती प्रतिमा अस्थाना ने उस सत्र् की अध्यक्षता कर रहे इतिहासकार
कपिल कुमार से कहा कि अवैद्यनाथ जी आयोजन का उद्घाटन करना चाहते हैं तथा उपस्थित लोगो
को सम्बोधित भी करना चाहते हैं कुलपति ने घोषणा की “गोरखपुर नगर के गौरव प्रथम नागरिक
पथ प्रदर्शक पवित्र मूर्ति गोरक्षपीठाधीश्वर महन्थ अवैद्यनाथ मंच पर आकर इतिहासकारो
को सम्बोधित करेंगे सभी लोगो से आग्रह है कि वे खड़े होकर पूज्यपाद महन्थ जी के प्रति
सम्मान प्रकट करें.” इस घोषणा के साथ ही विरोध के स्वर गूंजने लगे. अधिकांश प्रतिनिधि
हाल छोड़कर बाहर चले गये. कुलपति ने माईक पर कहा कि महन्थ जी बिना सम्बोधन के नही जायेंगे.
हाल में शर्म-शर्म के नारे लगने लगे. उस समय
प्रो. इरफान हबीब ,प्रो. रामशरण शर्मा ,दुर्गा प्रसाद भट्टाचार्या , कपिल कुमार आदि देश के वरिष्ठ इतिहासकार मौजूद थे, महन्थ
समर्थको ने इन सभी के साथ धक्का मुक्की की तथा मारने-पीटने की धमकी दी गोरखपुर में उस समय तीन स्थापित दैनिक समाचार पत्र
प्रकाशित होते थे. 1 जनवरी को केवल एक समाचार
पत्र ने संक्षेप में इस पूरी घटना का ब्यौरा छापा था, देश भर के गणमान्य इतिहासकारो
के सामने घटित हुयी तथा सारे नगर में चर्चित इस घटना की कोई खबर तक नही दी गयी. अगले
दिन से लगातार तीन अखबारों ने इस आशय की प्रेस विज्ञप्ति छापना शुरू कर दिया कि हम
साम्प्रदायिक तत्वों द्वारा पूज्य महन्थ जी
के बहिष्कार की निन्दा करते हैं, एक समाचार पत्र ने तो यहाँ तक छाप दिया कि अलीगढ़ तथा
कश्मीर से आये कुछ मुस्लिम इतिहासकारो ने पूज्य महन्थ जी को अपमानित करने का प्रयास
किया. कुलपति प्रतिमा अस्थाना का एक बयान प्रकाशित हुआ कि यह एक वामपंथी छात्र संगठन
“दिशा छात्र समुदाय” तथा “इतिहासबोध मंच”
की अब्यवस्था फैलाने की नतीजा थी. इस घटना की विस्तृत रिपोर्ट उस समय मौजूद कवयित्री
तथा सामाजिक कार्यकर्ता कात्यायानी ने लिखी थी जो गौतम नवलखा के सम्पादन में प्रकाशित ’साॅचा’पत्रिका जो अब बन्द हो
चुकी है के साल 89 -90 के दिसम्बर- जनवरी के अंक में छपी थी. मैने इस पुरानी
घटना का वर्णन इसलिए किया कि क्योकि यह बताना जरूरी था कि पूर्वान्चल में घोर साम्प्रदायिक
गोलबन्दी आदित्य नाथ से पूर्व ही शुरू हो गयी
थी तथा इसे आगे बढ़ाने मेेें पूर्वान्चल के समाचार पत्रो की महत्वपूर्ण भूमिका थी जो
आज भी जारी है.
योगी परिघटना की आर्थिक
सामाजिक पृष्ठभूमि-पूर्वी उत्तर प्रदेश का यह इलाका आजादी के पूर्व से ही यहाँ से विदेश
गये गिरमिटिया मजदूरो के लिए विख्यात रहा है. आजादी के बाद भी यहाँ की स्थिति में कोर्ह
विशेष सुधार नही हुआ. गरीबी बदहाली तथा हर वर्ष आने वाली बाढ़ो ने यहाँ की स्थिति को
और विकट तथा जटिल कर दिया है. मुसलमानो में यहाँ बुनकरो की बड़ी आबादी है लेकिन आज ये
भी बदहाली की स्थिति में जी रहे हैं नेपाल से सटे होने के कारण इस इलाके में माफिया
गिरोहो की सरगर्मि लम्बे समय से चर्चा में रही हैं लेकिन कुछ माफिया सरगनाओ के मारे
जाने तथा कुछ के राजनीति में चले जाने के बाद इनकी गतिविधियां मद्धिम हो गयी. यद्यपि पहले से यह इलाका उपेक्षित
रहा गोरखपुर में फर्टिलाईजर कारर्पोरेशन आफ इण्डिया के बन्द होने तथा इस इलाके में
25 में से करीब 20 चीनी मिलो के बन्द होने
के पश्चात क्षेत्रीय युवाओ कीं बेरोजगारी में भारी इजाफा हुआ. गोरखपुर आजमगढ़ मऊ ,घोसी जैसे इलाको में एक समय में अविभाजित कम्युनिस्ट
पार्टी का काफी जनाधार था, मुस्लिम बड़े पैमाने पर कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े थे. बाद
में सपा ,बसपा की जातिवादी अस्मितावादी
राजनीति के बाद वामपंथियों का जनाधार तेजी से समाप्त होने लगा इस जातीय गोलबंन्दी ने
ना केवल वामपंथी आन्दोलन को चोट पहुचायी बल्कि
संघ परिवार के हिन्दुत्व की परियोजना को भी तात्कालीक रूप से नुकसान पहुचाया. सपा ,बसपा की राजनीति ने दलित और पिछड़ो के एक छोटे से वर्ग
को राजनीतिक पहचान तो दी परन्तु वह बहुसंख्यक लोगो के आर्थिक प्रश्नो को हल न कर सकी.
लगातार सत्ता में रहने के बावजूद ये ना तो
एक दशक से बन्द फर्टिलाइजर कारखाने तथा चीनी मिलो को खुलवा पाई न ही रोजगर की कोई अन्य
व्यवस्था। शीघ्र ही इस इलाके में पिछड़ा , अति पिछड़ा दलित ,अति दलित के बीच के अंतर्विरोध खुलकर सामने आ गये.
एक दूसरा प्रश्न दलितो
तथा पिछड़ो के हिन्दूकरण का था. दलित तथा पिछड़ो की राजनीति करने वाले नेताओ ने इनके
सांस्कृतिक बदलाव के लिए कोई कदम नही उठाये इस कारण से इनका बड़े पैमाने पर हिन्दूकरण
हुआ इसमें आर.एस.एस. तथा अन्य हिन्दू संघटनो की बड़ी भूमिका है। मुठ्ठी भर दलित बुद्धिजीवि
भले जे.एन.यू. जैसी जगहो पर “महिषासुर गोरव दिवस” मना रहे हो परन्तु दलितो
में बड़े पैमाने पर दो दशको में दुर्गा तथा अन्य देवी देवताओ के प्रति आस्था बढ़ी है.
गोरखपुर शहर में नवरात्र के समय दो दर्जन से उपर दुर्गा समितियाँ दलितो तथा पिछडो द्वारा
संचालित होती हैं. सावन माह में कावड़ियों में 80 से 90 प्रतिशत दलित तथा पिछड़ो की आबादी भाग लेती है. इस सब
का भारी लाभ भाजपा तथा संघ परिवार ने उठाया.
इन्ही सब असफलताओ को
भुनाकर जब योगी आदित्यनाथ उग्र हिन्दुत्व तथा
विकास के मुद्दो को लेकर सामने आये तो जनता ने उन्हे हाथो हाथ लिया. योगी आदित्यनाथ
ने फर्टीलाइजर कारखाना चलवाने मण्डल में हर वर्ष इन्सेफिलाईटिस से हो रही मोतेा से
निदान के लिए एम्स स्थापना की घोषणाओ ने एक बड़ी आबादी को उनकी ओर आकर्षित किया. गोरखपुर
मंदिर की ओर से एक बड़ा चिकित्सालय चलाया जाता है जिसमें बहुत सस्ते दरो पर चिकित्सा
सुविधा उपलबध है. उन्होने समाज के निचले तबके विशेष रूप से छोटे दुकानदार सड़को पर अतिक्रमण
काने वाले लोगो के हक में आवाज उठायी। इस प्रकार उन्होने वामपंथियोंके मुद्दो को उठाकर
इस इलाके में अपार लोकप्रियता प्राप्त की तथा अपने जनाधार को व्यापक किया, परन्तु उन्होने
अपने उग्र हिन्दुत्व के मुद्दो को कभी नही त्यागा. दिल्ली के बाद बिहार में करारी हार
से यू.पी. में अपने प्रदर्शन को लेकर भाजपा ने पिछले साल से ही उन्हे मुख्यमंत्री पद
के चेहरे को लेकर चर्चाये चल रही थी. पिछले साल मार्च में गोरखनाथ मंदिर में हुयी भारतीस
सन्त सभा के चिन्तन बैठक में आर.एस.एस. के बड़े नेताओ की मौजदूगी में योगी आदित्यनाथ
को मुख्यमंत्री बनाने का संकल्प लिया गया. तब सन्तो ने कहा , “1992 में हम एक हुए तो ढांचा
तोड़ दिया अब केन्द्र में अपनी सरकार है सुप्रीम
कोर्ट का फैसला हमारे पक्ष में आ भी जाता है तो प्रदेश में मुलायम तथा मायावती की सरकार
रहते राम जन्म भूमि मंदिर नही बन पायेगा। इसके लिए हमें योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री
बनाना होगा.”
योगी आदित्यनाथ ने अपना
पहला चुनाव 26000 हजार के अन्तर से जीता
पर 1999 के चुनाव में हार जीत
का अन्तर महज 7322 तक सिमट गया। मण्डल
राजनीति के उभार ने उनके सामने गम्भीर चुनौती पेश की।
हिन्दु युवा वाहिनी का
उभार- इसके बाद ही उन्होने , हिन्दू युवा वाहिनी नामक संगठन का गठन किया। यह एक तरह
से योगी आदित्य नाथ के निजी सेना के रूप में काम करने लगीं यद्यपि वे इसे सांस्कृतिक
संगठन कहते हैं और जो “ग्राम रक्षा दल” के रूप में हिन्दू विरोधी , राष्ट्र विरोधी और माओवादी विरोधी गतिविधियों को नियंत्रित
करता है. हिन्दु युवा वाहिनी के खाते में गोरखपुर ,देवरिया ,महराजगंज ,कुशीनगर , सिद्धार्थनगर से लेकर
मऊ आजमगढ़ तक मुसलमानो पर हमले ओर साम्प्रदायिक हिंसा भड़काने के दर्जनो मामले दर्ज हैं.
खुद योगी आदित्यनाथ पर भी हत्या के प्रयास ,दंगा करने सामाजिक सद्भाव
को नुकसान पहुॅचाने दो समुदायों के बीच नफरत फैलाने धर्म स्थल को क्षति पहुॅचाने जैसे
आरोपो में तीन केस दर्ज हैं .
हिन्दु युवा वाहिनी के
इन कारनामों से वे वोटो का धुर्विक्रण करने में सफल होने लगे तथा उनके जीत का अन्तर
बढ़ने लगा. साल 2014 का लोक सभा चुनाव वह
तीन लाख से अधिक वोटो से जीते योगी आदित्यनाथ की निजी सेना हिन्दु युवा वाहिनी की हिंसक
गतिविधियों की शुरूआत महराजगंज जिले में पंचरूखियाॅ काण्ड से होती है जिसमें आदित्यनाथ
के काफिले से चली गोली से सपा नेता तलत अजीज के सरकारी गनर सत्यप्रकाश यादव की मौत
हो गयी. सूबे की कल्याण सिंह सरकार ने मामले की सी.बी.सी.आई.डी. को सौपा और योगी को
क्लीन चिट दे दी गयी. हालाँकि वादी तलत अजीज के डटे रहने के बाद यह मुकदमा आज भी चल
रहा है. इसके बाद कुशीनगर जिले में 2002 में मोहन मुण्डेरा काण्ड हुआ जिसमें एक लड़की के साथ
कथित बलात्कार का मुद्दा बनाकर गाॅव के 47 अल्पसंख्यको के घरो
को आग के हवाले कर दिया गया.ऐसी घटनाओ की एक लम्बी फेहरिस्त है लेकिन किसी में योगी
के खिलाफ न कोई रिपोर्ट दर्ज हुयी न ही कोई कार्यवाही हुयी. प्रदेश में बसपा ,सपा सरकारो के कार्यकालो के दौरान भी उनके खिलाफ कोई
कानूनी कार्यवाही नही हुयी. हालाकि दोनो दलो के नेता उन पर साम्प्रदायिक हिंसा के आरोप
लगाते रहे. हिन्दु युवा वाहिनी के हरकतों के कारण पूर्वान्चल के हालत खराब होते गये.
योगी और हि.यु.वा. के नेता खुलेआम हिंसा की
धमकी देते मामूली घटना को साम्प्रदायिक हिंसा में बदल दिया जाता. एक बार नेशनल हाइवे
पर ट्रक से कुचल कर कुछ गाये मर गयी , तो इसे आई.एस.आई. की
साजिश बताते हुए 3 दिन की बन्दी का एलान
कर दिया गया। उनके समर्थक नारे लगाते घूमते हैं “गोरखपुर में रहना है तो योगी- योगी कहना है”
गोरखपुर के बाहर दूसरी जगहो पर यह नारा “पूर्वान्चल
में रहना है तो योगी-योगी कहना है” हो जाता है. आज यह नारा “यू.पी. में रहना
है तो योगी -योगी कहना है” में तब्दील हो गया है.
जनवरी 2007 में एक युवक की हत्या के बाद हि.यु.वा. कार्यकर्ताओ
द्वारा “सैयद मुराद अली शाह” की मजार में आग लगाने की कोशिश के बाद हालत बिगड़ गये
और गोरखपुर प्रशासन को कफ्र्यू लगाना पड़ा. रोक के बावजूद योगी द्वारा सभा करने उत्तेजक
भाषण देने के कारण 28 जनवरी 2007 को उन्हे गिरफ्तार कर लिया गया. उन्हे गिरफ्तार करने
वाले जिलाधिकारी डा. हरिओम ओैर एस.पी. को दो दिन बाद ही मुलायम सरकार ने सस्पेण्ड कर
दिया. उन्हे करीब 11 दिन तक जेल में रहना
पड़ा. योगी की गिरफ्तारी के बाद कई जिलो में हिंसा तोड़फोड़ आगजनी की घटनाये हुई. जिसमें दो लोग की मौत भी हो गयी. पहली बार पुलिस
ने हिन्दू युवा वाहिनी पर थोड़ी सख्ती बरती जिसका बयान करते हुए वे लोकसभा में रो पड़े
थे. साल 2007 में गिरफ्तारी ने उनकी
तथा हि.यु.वा. की उग्रता में थोड़ी कमी जरूर ला दी तथा हर घटना के मोके पर पहुँच कर
अपने हिसाब से न्याय की जिद नही करते. यद्यपि अपने प्रिय विषयो “लव जेहाद”, “घर वापसी”,
“इस्लामिक आतंकवाद”, “माओवाद” पर वे हिन्दू सम्मेलनो में वे गरजते रहते हैं. बाल ठाकरे
के मुख पत्र सामना के तर्ज पर उन्होने “हिन्दवी” नामक समाचार पत्र भी
निकाला यद्यपि यह तीन वर्ष तक चल कर बन्द हो गया. अब इसे दैनिक निकालने की योजना है.
भाजपा में रहते हुए उनका हर चुनाव में भाजपा
नेताओ से टकराव होता रहा, वह अपने लोगो की सूची नेतृत्व के सामने रख देते कई बार तो
उन्होने भाजपा के खिलाफ बागी उम्मीदवारेा को खड़ा किया और उनके प्रचार में उतर कर पार्टी
के सामने संकट खड़ा कर दिया, लेकिन 2017 के विधान सभा के चुनाव
में भाजपा द्वारा उन्हे स्टार प्रचारक बनाने के बाद पार्टी के प्रति उनका रूख नरम हो
गया.
Image Courtesy- .bhaskar.com |
योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री
बनने के निहितार्थ- 2017 के विधान सभा चुनाव
में उ.प्र. में भजपा का भारी बहुमत 325 तक सीट जीतने के बाद
योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाना अवश्य ही समाज के बृहद तबके को आश्चर्यचकित कर
रहा है, परन्तु इस तथ्य से नजर चुराना नामुमकिन
है कि चुनाव में नरेन्द्र मोदी तथा योगी आदित्यनाथ द्वारा जबरदस्त सम्प्रदायिक धु्रवीकरण
ने इतनी बड़ी सफलता के द्वार खोले हैं. यह चुनाव सपा ,बसपा की अस्मितावादी ,जातिवादी ,राजनीति का एक शोक गीत
भी है. ज्यादातर वामपंथियों की यह मान्यता रही है कि जाति की
अस्मितावादी राजनीति संघ परिवार की सम्प्रदायिक गोलबन्दी पर विजय पा लेगी, जिसमें वे
पूरी तरह विफल रहे. संघ परिवार ने जाति की
सोशल इंजीनियरिंग तथा धर्म की फांसीवादी राजनीति का सफल प्रबन्धन किया. 2019 के लोकसभा चुनाव में वे इस रणनीति को और कुशलता से
अपनाने के लिए तैयार है. उस समय योगी आदित्यनाथ और नरेन्द्र मोदी उसके कुशल सेनापति
होगे. वामपंथियों को इस तथ्य पर भी चिंतन करना
चाहिए कि उ.प्र. में जाति धर्म की राजनीति ने वर्गीय राजनीति को क्यो परिधि पर ढकेल
दिया। जिसकी आज सबसे ज्यादा जरूरत है.
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