Tuesday, January 19, 2016

नशे के कारोबार का राजनैतिक अर्थशास़्त्र

- स्वदेश कुमार सिन्हा

नशे और वेश्यावृत्ति का कारोबार शायद दुनिया का सबसे प्राचीन कारोबार है। पिछले दिनों पंजाब में पठानकोट के वायुसेना एयरबेस पर हुए आतंकवादी हमले में ड्रग माफिया की संलिप्तता की खबरे आम है । पंजाब इन दिनों सारे देश में ड्रग्स के कारोबार का एक बड़ा केन्द्र बनकर उभर रहा है। एक संस्था¹ की रिपोर्ट के अनुसार ’’पंजाब में इस समय 75 हजार करोड़ रूपये की ड्रग्स की खपत हर वर्ष हो रही है। इसमें करीब एक लाख तेइस हजार करोड़ केवल हेरोइन की खपत है। ड्रग पर यहाँ पर लोग अकेले 20 करोड़ रूपया प्रतिदिन खर्च करते है । तकरीबन हर परिवार में आपको नशे का सेवन करने वाले लोग मिल जायेंगें । आॅकड़े तो यह भी बताते हैं कि हर तीन कालेज छात्रो में एक नशे का आदी है। ग्रामीण क्षेत्रो में तो स्थिति और भी बुरी है। स्थिति यह है कि पुलिस खुद अपने कर्मियों के लिए नशा मुक्ति कैम्प लगा रही है । 

पंजाब में हरित क्रान्ति के फलस्वरूप कृषि का विकास पूँजीवादी दायरे में अपने चरम पर पहुँच कर अब उतार पर है। इसलिए बड़े भू-स्वामी अपनी कृषि की पूँजी को उद्योग धन्धो में निवेश कर रहे हैं । फलस्वरूप 60 प्रतिशत छोटे किसान तथा भूमिहीन बेरोजगारी की स्थिति में पहुँचकर कर्ज के जाल में फॅस गये हैं , इस प्रदेश में भी किसानो की आत्महत्याओें की खबरे आने लगी है । अनेक युवा सरकारी नौकरियों की ओर अथवा विदेशो की ओर पलायन कर रहे हैं । परन्तु बहुसंख्यक बेरोजगार युवा नशीले पदार्थो की तस्करी की ओर मुड़ रहे हैं । क्योकि यह अधिक धन कमाने का सुगम और सरल रास्ता है। सीमावर्ती राज्य होने के कारण पाकिस्तान तथा अफगानिस्तान से भारी मात्रा में ड्रग पंजाब में आ रही है । अनेक सफेदपोश नौकरशाह राजनीतिज्ञ पुलिस अधिकारी तथा सीमा सुरक्षा बल के जवान भी इस धन्धे में शामिल है । इस तस्करी को रोकने के लिए संसद में पास एन0डी0पी0एस0 एक्ट 1985ङ को पंजाब में कड़ाई से लागू किया गया परन्तु इस व्यापार ने आज अपनी इतनी गहरी जड़े जमा ली है कि यह एक्ट भी यहाँ बेअसर हो रहा हैं। 

ड्रग्स की तस्करी में मुनाफे का अन्दाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि एक किलोग्राम हेरोईन जो म्ंयामार के उत्पादक इलाके में एक हजार रूपये में मिल जाती है वह मणिपुर इम्फाल में पहुँचकर दस हजार रूपये में तथा बम्बई में एक लाख रूपये यही अमेरिका तक पहुँचते - पहुँचते दस लाख डालर तक हो जाती है। यह आॅकड़ा नब्बे के दशक का है , आज इस धन्धे में मुनाफे का अन्दाजा सहज ही लगाया जा सकता है । अमेरिका सहित दुनिया के अधिकांश मुल्क भले ही आज ’’नशे के कारोबार के खिलाफ युद्ध ’’ का दावा करते हो परन्तु वर्तमान पूँजीवादी व्यवस्था के जन्म तथा इसके बने रहने में नशीले पदार्थो के कारोबार का कितना योगदान हैं। इसकी जानकारी हमें चीन में अफॅीम के कारोबार तथा इससे पूरे मुल्क के पूरी तरह नशे की गिरफ्त से बर्बाद होने के इतिहास से जान सकते हैं । 

ईस्ट इण्डिया कम्पनी के आधीन सभी क्षेत्र में पोस्त की खेती करने उससे मादक द्रब्य बनाने तथा निर्यात के लिए नीलामी से पहले उसकी खरीद फरोख्त करने पर कम्पनी सख्त इजारा कायम हो गया है। इस पौधे की खेती करना अनिवार्य है। भारत के उत्तरी व मध्यवर्तीय भाग बनारस ,बिहार और अन्य क्षेत्रो के बेहतरीन विशाल भूखण्ड अब पोस्त के पौधो से लदे हुए हैं । भोजन और वस्त्र उद्योग में काम आने वाली वनस्पतियों को उगाना ,जिन्हे सदियों से उगाया जा रहा था , लगभग बन्द कर दिया गया। 1881 में कम्पनी ने पूरी तैयारी के साथ पहली बार भारतीय अफीम को बड़ी मात्रा में चीन भेजा। इससे पहले इस मादक द्रब्य के बारे में चीनी लोगो को कोई जानकारी नही थी। इसके बाद यह व्यापार दिन दूना रात चौगुना बढ़ता गया। शीघ्र ही ऐसी हालत पैदा हो गयी जिसमें चीन से आयात की जाने वाली चाय ,रेशम ओैर अन्य चीजो का मूल्य चीन निर्यात की जाने वाली अफीम का मूल्य चुकाने के लिए काफी नही रह गयी तथा विनिमय में चीन में जाने वाली चाॅदी देश के अन्दर आने के बदले देश के बाहर जाने लगी। सन् 1800 में सम्राट च्याछिंड़ ने अफीम के शारीरिक तथा आर्थिक दुष्प्राभाव से विक्षुप्ध्ध होकर इस पर प्रतिबन्ध लगा दिया, लेकिन तब तक बहुत से लोगो को इसकी इसकी लत लग चुकी थी तथा अफीम के व्यापार के मुनाफे से बहुत से व्यापारी और अफसर भ्रष्ट हो चुके थे। इसलिए तस्करी और घूसखोरी ने इस प्रतिबन्ध को निष्प्रभावी बना डाला। 

अफीम का वार्षिक आयात जो 1800 से 2000 पेटियां (एक पेटी 140 से 150 पौण्ड की होती थी) के बराबर हो गया। 1838 में बढ़कर चालीस हजार पेटियों के बराबर हो गया, यहाँ पर यह भी बता दिया जाये कि इस घृणित व्यापार में अमेरिकी जलयान काफी पहले ही शामिल हो चुके थे। वे भारतीय अफीम की कमी को पूरा करने के लिए तुर्की की अफीम भी लाते थे। इस प्रकार उन्होने भी इस व्यापार में बेशुमार मुनाफा कमाया, जो बाद में अमेरिका के पूँजीवादी विकास का आधार बना। 5 इग्लैण्ड के पूंजावादी विकास में जिस तरह आदिम पूँजी संचय उपनिवेशो की लूट तथा अफ्रीका के गुलामो का व्यापार था , उसी तरह अमेरिका में भी विकास की प्रारभिक पूँजी अफीम जैसे घृणित ब्यापार से आयी , जिसने चीन जैसे प्राचीन तथा व्यापारिक रूप से विकसित राष्ट्र को पूरी तरह तबाह कर दिया तथा बहुसख्यक आबादी को नशेड़ी बना दिया। सन् साठ से सत्तर के दशक में वियतनाम युद्ध तथा अमेरिका में फैली व्यापक मन्दी हताशा निराशा और बेेरोजगारी ने ड्रग्स के व्यापार को एक नया जीवन दिया। 17 से 36 वर्ष की एक पूरी अमरिकन पीढ़ी जिसे ’’जान्स ’’ कहा गया। भारत में बनारस ,गोवा ,नेपाल में काठमाण्डू तथा थाईलैण्ड में बैंकाक में विभिन्न तरह के नशे जिसमें हेरोइन तथा सुई से लगाने वाले नशे में मदहोश होकर घूमती देखी जा सकती थी। हिप्पी जैसे अराजक आन्दोलन भी इस दौर में पनपे। 90 के दशक में अफगानिस्तान में सोवितय सेना से लड़ने के लिए अमेरिका ने अफगानी मुजाहिदो को भारी पैमाने पर हथियार दिये तथा अफगानिस्तान ,पाकिस्तान में अपने कब्जे वाले कबिलाई इलाको में भारी पैमाने पर अफीम की खेती की छूट दे दी , यह अफीम तथा उससे बनी ड्रग्स भारी पैमाने पर पाकिस्तान ,भारत होते हुए अमेरिका तक पहुॅचने लगी। बाद में अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद अफीम तथा नशीले पदार्थो की तस्करी के बल पर ही संयुक्त राष्ट्रसंघ की आर्थिक नाकेबन्दी के बावजूद तालिबान का शासन लम्बे समय तक चलता रहा। आज भी अफगानिस्तान नशीलो पदार्थो के व्यापार का बहुत बड़ा गढ़ बना हुआ हे। 

नशीले पदार्थो का यह व्यापार किस तरह वर्तमान पूँजी व्यवस्था को संचालित करने का एक प्रमुख आधार बन गया है तथा इस पर निर्भर अन्य व्यवसाय चलने लगे, इसका विशद् वर्णन अमेरिकी वामपंथी लेखक सोल यूरिक ने अपने लेख में किया है जो हमारी आंखें खोल देता है। हम यह भी भूल जाते हैं कि अफीम के नियंत्रण के चलते ही चीन में पश्चिमी देशो के लिए रास्ता खुला जिसके लिए अनेक छोटे मोटे कठिन युद्ध भी लड़े गये। जबकि अमेरिका तथा ब्रिटेन की कम्पनियां पीपोटीज काबोट और डेलेना’ने अफीम के व्यापार से अकूत धन कमाया। हमे यह बात याद रखनी चाहिए कि च्याॅग काई शेक जैसे विश्वस्तरीय नेता ने शुरूआती दौर में दूसरे कामो के साथ-साथ शंघाई के अपराध जगत का सदस्य बनकर अफीम का धन्धा किया था। हमें यह अमेरिका ,’’सी0आई0ए0 की हवाई संस्था ’’ को भी नही भूलना चाहिए जिसने अफीम को हवाई रास्ते से लाओस से बाहर निकालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। बहुत से ऐसे अमेरिकन होंगे जो सी0आई0ए0 को एक ड्रग विक्रेता के रूप में देखने या हिन्दी चीन के बारे में अमेरिकी नीति का सम्बन्ध हेरोइन से होने की बात का बिल्कुल यकीन नही करेगे। लेकिन सच्चाई तो यही है। ’’ 

अमेरिका के दक्षिणी क्षेत्रो में मारफीन हिरोइन अफीम ओैर कोकिन को पारम्परिक रूप सें इस्तेमाल किया जाता है , इससे भी आगे बढ़कर कभी -कभी नशीले पदार्थो के दवाई के रूप मे बदल कर किसानो की पत्नियों को दिया जाता रहा है , ताकि एक नयी श्रम शक्ति उत्पन्न कर काम करवाया जा सके। इस श्रम शक्ति ने कृषि उद्योग को ऐसे संक्रमण काल में सहारा दिया जब अधिकतर भूमि को और अधिक आबाद करके कृषि उद्योग के हवाले किया जा रहा था। 

दक्षिणी अमेरिकी इण्डियन कठिन मेहनत करते समय कोका की पत्तियों को चबाकर अपनी उत्पादकता को बनाये रखते हैं , जिससे कोकीन बनती है। जिन्होने नशे के साधनो का सन्तुलित तरीके से उपयोग किया ’’दुनियां को सभ्य बनाने का काम ’’ इतना आसान भी तो नही और ऐसे ’’ऐतिहासिक दौर ’’भी रहे हैं जब भविष्य के लिए कुछ लोगो को कुर्बानी देनी पड़ती है। 

अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन के कार्यकाल में ’’आपरेशन इण्टरसेप्ट ’’ की घोषणा की गयी। यह हेरोइन के पक्ष में लागू किया गया एक प्रकार का सुरक्षा शुल्क था , इसे गांजे के स्थानीय तस्करो के खिलाफ मुहीम छेड़कर पूरे देश में लागू किया गया। लेकिन इसमें हेरोइन के विक्रेताओ को रियायते दे दी गयी, जिसके चलते उन्हे सड़को पर आराम से इसे बेचते हुए देखा जा सकता था। यहाँ तक कि बच्चो ने यह जान लिया कि उन्हे नशे के धन्धे में फॅसाया जा रहा है। गांजा, हेरोइन के मुकाबले सस्ता और कम लाभ देने वाला उत्पाद है। लेकिन गाॅजे के इस्तेमाल की सबसे खतरनाक बात यह थी कि ’’यह नशेड़ी के अन्दर एक विघटनकारी रहस्यमकता ’’का संचार कर देता है , समूह में रहने वाले लोग अलगाव ग्रस्त लोगो के मुकाबले इसका कम उपयोग करते हैं । एक नशे को कम कर दूसरे को प्रोत्साहित किया गया। मध्यवर्गीय युवाओ के बीच एक नये बाजार को उत्पन्न किया गया और इसे बेचने के लिए सूबो ,ग्रामीण क्षेत्रो यहाँ तक कि कालेजो को चुना गया। आज हम इस विशाल बाजार का हिस्सा बन चुके हैं जिसे ’’फोब्र्स’’ ने विलासिता के बाजार का नाम दिया। 

आज के समाज में विकल्पो की कमी के चलते युवा वर्ग में असन्तोष है , यही ऐसा वर्ग है जो विद्रोह कर सकता है इसलिए युवाओ को लक्ष्य बनाकर ही इस जहर को परोसा जा रहा है। नशेड़ी एक दूसरे के साथ समूह में नही बॅधते , इसलिए उनमें ’’राजनीतिक पिछड़ापन होता है।’’ नशेडि़यो की इस दुनियां में सभी एक दूसरे के खिलाफ युद्धरत हैं । आज इस तरह की लत दस वर्ष तक के बच्चो तक में फ़ैल रही हे। अतीत में ड्रग्स ने घेटो में रहने वालो को राजनीतिक रूप से शान्त रखने युवाओ को इस काम की नैतिकता सिखाने और वितरकेा , सेल्समैनो ओैर ग्राहको का ऐसा साम्राज्य खड़ा करने का काम किया जिस में इसके बाजार में आने वाली सभी चुनौतियों का गैरराजनीतिकरण कर उन्हे खत्म कर दिया ,क्योकि एक राजनीतिक लड़ाई आने वाले समय में सम्पूर्ण व्यवस्था के लिए घातक सिद्ध हो सकती है। इसलिए अपने राजनैतिक , आर्थिक स्वार्थ के लिए युवाओ को नशेड़ी और ड्रग्स के विक्रेता में बदल दिया गया। ड्रग्स के लतियों की पीठ पर एक विशाल आर्थिक इमारत खड़ी कर दी गयी है, जो बहुत सी आर्थिक और राजनीतिक समस्याओें को हल कर देती है। उदाहरण के लिए कुछ ऐसे उद्योग भी हैं जो नशेडि़यों के कारण पैदा हुए। जैसे बिना टैक्स की अतिरिक्त पूँजी को पुलिस की आमदनी के लिए उपलब्ध करवाया जाता है, क्योकि हेरोइन उद्योग एक अर्द्ध सुरक्षित व्यापार है। यह दो तरीको से प्रयोग में लायी जाती हे। एक तो रिश्वत देकर , दूसरे जब्त की हुई हेराईन को नशाखोरी के बाजार में पुनः बेचकर पैसा बनाने में यह पैसा केवल पुलिस तक ही नही बल्कि शीर्ष तक पहुँचता है, जहाँ यह जिला प्रतिनिधियों न्यायधीशो ,सांसदो ,विधायको में बांटा जाता है। इसका प्रयोग राजनैतिक प्रचार कार्यक्रमो को चलाने के लिए भी किया जाता है। 

ड्रग्स के इस्तेमाल के खिलाफ जंग छेड़ने के बहाने पूरे देश में पुलिस बल तैयार किया जाता है, जबकि पुलिस बल की संख्या वृद्धि का एक अलग राजनीतिक पहलू है। बढ़ते अपराधो को भी कर्मचारी भर्ती ओैर तकनीकी के नाम पर धन इकटठा करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा ड्रग्स के व्यापार को तथ्यता सही साबित करने के लिए नशेडि़यों को अनिद्रा का रोगी बना कर प्रस्तुत किया जाता है, ताकि उनकी आदतो का सहारा देकर इस व्यापार को आगे बढ़ाया जा सके। नशे के इस व्यापार में बेश्यावृत्ति का बाजार भी खूब फल-फूल रहा है। यह खास तौर पर इस आबादी में ’’स्त्री मुक्ति’’ की चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए स्थायी रूप से बेरोजगार महिलाओ के लिए काफी उपयोगी है। मेडिकल और दवा बनाने वाली कम्पनियों का विकास भी हीरोइन के साथ जुड़ा हुआ है। डा0 तरह-तरह की बीमारियों के इलाज लिए आवाज उठाते रहते हैं , प्रतिस्पर्धा के चलते दवा कम्पनियों प्रतिस्पर्धी दवाओ को बनाने के लिए अनेक नशीली दवाये बना रही हैं । ’’मैथाडोन ’’ का उत्पादन जो संभवतः हीरोइन से लड़ने के लिए उपयोगी है ओैर तेजी से बढ़ा है , कुछ नशेड़ी बताते है यह एक उच्च नशीला पदार्थ है । नशेडि़यो के लिए पुर्नवास बनाने के लिए लाखो डालर खर्च किये जा रहे हैै , लेकिन जिन सेण्टरो को बनाने के लिए इन योजनाओ पर पैसा खर्च किया जाता है वे कभी बने ही नही ओैर न बनेंगे। इस नये पूँजीवाद में वास्तविकता पर नही प्रक्रिया पर भरोसा किया जाता है। ड्रग्स के व्यापार और हथियारो के तस्करी के बीच गहरे अन्र्तसम्बन्ध है । ड्रग्स के नेटवर्क का प्रयोग करके अनेक युद्धग्रस्त ओैर आतंकग्रस्त इलाको में अत्याधुनिक हथियारो की सप्लाई आसानी से की जा रही है। यह हम भारत पाकिस्तान ,अफगानिस्तान जैसे आतंकग्रस्त तथा अफ्रीक के अनेक ग्रह युद्ध से ग्रस्त देशो में आसानी से देख सकते है । 

अमेरिका तथा सारी दुनिया में ड्रग्स के खिलाफ जंग की इन वास्तविकताओ से यह आसानी से समझा जा सकता है कि वास्तव में ड्रग्स का व्यवसाय इस मरणासन्न पूँजीवादी साम्राज्यवाद को नया जीवन दे रहा है। अनेक लैटिन अमेरिकी देशो जैसे मैक्सिको ,पनामा ,चिली तथा अनेक ऐशियाई और अफ्रीकी देशो में ड्रग माफिया ने एक सामान्तर सत्ता ओैर सैनिक तन्त्र विकसित कर लिया है। ऐसे कुछ गिरोहो का बजट तो उस देश के सकल घरेलू उत्पादन से भी कई गुना ज्यादा है। ये ड्रग माफिया आज बड़ी सुविधाजनक स्थिति में सारे देश में नशीले पदार्थो का निर्यात कर रहे हैं । आखिरकार अवैध व्यापार वर्तमान व्यवस्था की चालक शक्ति जो है। 

सन्दर्भ औैर टिप्पणियां - 
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आल इण्डिया इन्स्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंसेज (एम्स) से जुड़ी नेशनल ड्रग कन्ट्रोल की रिपोर्ट। 

पंजाब में ’’नशीले पदार्थो का प्रसार ओैर उनका समाधान’’ डा0 जगजीत सिंह चीमा, चण्डीगढ़ में हुए एक सेमिनार में प्रस्तुत पर्चे के अंश। 

-एम0डी0पी0एस0 एक्ट 1978 (नशीले पदार्थो के प्रसार ,तस्करी, रख्ने बेचने के खिलाफ 1978 में संसद में पास कानून) इसके अन्तर्गत इन सब अपराधो में कड़े दण्ड का प्रावधान है। 

चीनी दस्तावेजो का संग्रह ग्रन्थ 5 ( 1837 पृष्ठ 472 जिसे एस0 विलियम्स की रचना ’’मध्यवर्तीय राज्य’ न्यूयार्क , लन्दन 1948 से उद्धृत किया गया है। 

अफीम युद्ध से मुक्ति तक, लेखक इजराइल एक्सटाइन प्रकाशक विदेशी भाषा प्रकाशन गृह पेइचिंग प्रथम हिन्दी संस्करण 1948। 

जान्स -1957 से 1967 के बीच जन्मी अमेरिकी पीढ़ी को जान्स कहा जाता है । जिसे नशे की लत सबसे ज्यादा थी। 

-सोल यूरिक - प्रसिद्ध अमेरिकन वामपंथी लेखक का मन्थली रिब्यू पत्रिका दिसम्बर 1970 में प्रकाशित लेख ’’नशे का राजनीतिक अर्थशास्त्र’’ के अंश पेज 152 -53 प्रकाशक मन्थली रिब्यू प्रेस न्यूयार्क।

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